21 April 2020

5751 - 5755 कामयाबी सफ़र धूप आफ़ताब चाँदनी ख़्याल मौसम धूप शायरी



5751
देख तू सबा बनकर,
गर्म धूप भी बनकर देख;
कभी आफ़ताबसा तेज़ तो हो,
कभी चाँदनी बन लिपटकर देख...!

5752
धूप छूती हैं बदनको,
जब शमीम...
बर्फ़के सूरज,
पिघल जाते हैं क्यूँ...
फ़ारूक़ शमीम

5753
कामयाबी--सफ़रमें,
धूप बड़ी काम आई...
छांव अगर होती तो,
सो गये होते.......!

5754
मैं अपने आँगनमें,
बस उतनी ही धूप चाहता हूँ...
जिसमें मेरे ख़्याल,
सूखने पायें...!

5755
धूप सा रंग हैं और,
खुद हैं वो छाँवो जैसा...!
उसकी पायलमें,
बरसातका मौसम छनके...!!!
                         क़तील शिफ़ाई

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