5701
पेडोंकी
तरह,
हुस्नकी
बारिशमें नहा लूँ...
बादलकी तरह तुम,
झूमके घिर आओ
किसी दिन...!
5702
कहीं फिसल न
जाऊं,
तेरे ख्यालोंमें चलते चलते...
अपनी यादोंको रोको,
मेरे शहरमें बारिश हो
रही हैं...!
5703
हुनर क्या ग़ज़बका
था,
उसकी प्यारी बातोंमें...
उसने काग़ज़ पर
बारिश लिखा,
और हम यहाँ
भीग गए.......!
5704
बारिशसे
ज्यादा,
तासीर हैं तेरे
यादोंकी...
हम अक्सर बंद कमरोंमें,
भीग जाते हैं.......!
5705
मैंने अपना ग़म,
आसमाँको
सुना दिया...
शहरके लोगोंने,
बारिशका
मजा लिया.......
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