2 April 2020

5671 - 5675 दिल मोहब्बत हिचकी शिकायत साँस जहर हिसाब शायरी


5671
हिसाब अपनी मोहब्बतका,
मैं क्या दूँ...
तुम अपनी हिचकियोंको भी,
कभी गिना करो.......

5672
कैसे करूँ मैं तुम्हारी,
यादोंकी गिनती...
साँसोंका भी कोई,
हिसाब रखता हैं क्या...!

5673
शिकायतोकी पाई पाई,
जोड़कर रखी थी मैंने...
उसने गले लगाकर,
सारा हिसाब बिगाड़ दिया...

5674
जहरका भी अज़ीब हिसाब हैं,
मरने के लिए ज़रासा...
मगर जिंदा रहने के लिए,
बहुत सारा पीना पड़ता हैं...

5675
मुद्दतें हो गयीं,
उनसे हिसाब किये...
क्या पता कितने रह गये हैं,
उनके दिलमें हम.......

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