26 April 2020

5781 - 5785 दिल तलब ख्वाहिश कुबूल याद हक़ दामन अलफ़ाज़ दुआ शायरी


5781
तलब ये नही की मैं,
तुम्हारा हो जाऊँ...
ख्वाहिश ये हैं की तुम्हारी दुआ बनूं,
और कुबूल हो जाऊँ.......!

5782
हर एक दुआमें,
हम तो यही कहते हैं...
वो सदा खुश रहें,
जो दिलमें मेरे रहते हैं...!

5783
मेरी यादोकी शुरुआत ही,
तुमसे होती हैं...!
तुम ये कहाँ करो,
मुझे दुआओमें याद रखना...!!!

5784
मेरा हक़ नहीं हैं,
तुमपर ये जानता हूँ मैं...
फिर भी ना जानें क्यूँ दुआओंमें,
तुझको माँगना अच्छा लगता हैं...!

5785
दामनको फैलाये बैठे हैं,
अलफ़ाज़--दुआ कुछ याद नहीं...
माँगू तो अब क्या माँगू,
जब तेरे सिवा कुछ याद नहीं.......!

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