14 April 2020

5716 - 5720 ख्वाब आँखे शब बात पैग़ाम बरस बारिश शायरी


5716
एक ख्वाबने आँखे खोली थी,
क्या मोड आया था कहानीमें;
मैं भीग रहा थी बारिशमें,
और आग लगी थी पानीमें ll

5717
मैं चुप कराता हूँ,
हर शब उमडती बारिशको...
मगर ये रोज़,
गई बात छेड़ देती हैं...
गुलज़ार

5718
उसको आना था कि,
वो मुझको बुलाता था कहीं...
रात भर बारिश थी,
उसका रात भर पैग़ाम था...
                          ज़फ़र इक़बाल

5719
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ,
पहली बारिश ही आख़िरी हैं मुझे...
तहज़ीब हाफ़ी

5720
बरस रही थी बारिश बाहर,
और वो भीग रहा था मुझमें...!
                             नज़ीर क़ैसर

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