5716
एक ख्वाबने आँखे खोली
थी,
क्या मोड आया
था कहानीमें;
मैं भीग रहा
थी बारिशमें,
और आग लगी
थी पानीमें ll
5717
मैं चुप कराता
हूँ,
हर शब उमडती
बारिशको...
मगर ये रोज़,
गई बात छेड़
देती हैं...
गुलज़ार
5718
उसको आना था
कि,
वो मुझको बुलाता था
कहीं...
रात भर बारिश
थी,
उसका रात भर
पैग़ाम था...
ज़फ़र इक़बाल
5719
मैं कि काग़ज़
की एक कश्ती
हूँ,
पहली बारिश ही आख़िरी
हैं मुझे...
तहज़ीब हाफ़ी
5720
बरस रही थी
बारिश बाहर,
और वो भीग
रहा था मुझमें...!
नज़ीर क़ैसर
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