23 April 2020

5766 - 5770 ज़िन्दगी इश्क़ रुस्वा दुःख हमसफ़र जाम जहर दर्द दवा शायरी


5766
ज़िन्दगी हैं चार दिनकी,
कुछ भी ना गिला कीजिये;
दवा जाम इश्क़ या जहर,
जो भी मिले मजा लीजिये !

5767
मेरे दुःखकी कोई,
दवा न करो...
मुझको मुझसे अभी,
जुदा न करो...
सुदर्शन फा़खि़र

5768
काबा भी हम गए,
न गयापर बुतोंका इश्क़ !
इस दर्दकी ख़ुदाके भी घरमें,
दवा नहीं.......!
                           अमीर मीनाई

5769
दोनोंने किया हैं,
मुझको रुस्वा...
कुछ दर्दने और,
कुछ दवाने.......
वहशत रज़ा अली कलकत्वी

5770
ज़िंदगी दर्द भी,
दवा भी थी...
हमसफ़र भी,
गुरेज़ पा भी थी.......
    अमजद इस्लाम अमजद

No comments:

Post a Comment