5726
होती हैं मुझपर
रोज,
तेरी रहमतोंके रंगोंकी बारिश;
मैं कैसे कह
दूँ मेरे मालिक,
दिवाली सालमें एक बार
आती हैं...!
5727
शुक्र हैं परिंदोको
नही पता,
उनकी सरहद और
मजहब क्या हैं...
वरना आसमाँसे रोज,
खूनकी बारिश होती.......
5728
अहम डूब जाए,
मतभेदके
किले ढह जाए,
घमंड चूर चूर
हो जाए,
गुस्सेके
पहाड़ पिघल जाए,
नफरत हमेशा के लिए
दफ़न हो जाए;
और हम सब,
मैं से हम
हो जाए.......
5729
कच्ची दीवारोंको,
पानीकी लहर काट
गई...
पहली बारिश ही ने,
बरसातकी
ढाया हैं मुझे...
ज़ुबैर रिज़वी
5730
वो मेरे रुबारु
आया भी,
तो बरसातके मौसममें...
मेरे आँसू बह
रहे थे और,
वो बरसात समझ बैठा...
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