18 April 2020

5736 - 5740 सुब्ह साया मुख रूप मयस्सर पल वक़्त हसरत शजर धूप शायरी


5736
बैठाही रहा सुब्हसे,
मैं धूप ढलेतक...
सायाही समझती रही,
दीवार मुझे भी.......
             शहज़ाद अहमद

5737
धूप ही धूप थी,
इसके मुखपर;
रूप ही रूप,
हवामें उतरा l
नासिर शहज़ाद

5738
मयस्सर फिर होगा,
चिलचिलाती धूप में चलना...
यहींके हो रहोगे,
साएमें इक पल अगर बैठे...
                         शहज़ाद अहमद

5739
सुना हैं धूपको,
घर लौटने की जल्दी हैं;
वो आज वक़्तसे पहलेही,
शाम कर देगी.......
सदार आसिफ़

5740
तमाम लोग इसी हसरतमें,
धूप धूप जले...
कभी तो साया घनेरे,
शजरसे निकलेगा...
                   फ़ज़ा इब्न--फ़ैज़ी

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