13 April 2020

5711 - 5715 रंग दीवार ख्वाहिश परेशानी आग तमाम तन्हाई बारिश शायरी


5711
उसने बारिशमें भी,
खिड़की खोलके देखा नहीं...
भीगने वालोंको कल,
क्या क्या परेशानी हुई...
                       जमाल एहसानी

5712
शायद कोई ख्वाहिश,
रोती रहती हैं...
मेरे अन्दर,
बारिश होती रहती हैं...
अहमद फ़राज़

5713
साथ बारिशमें लिए फिरते हो,
उस को 'अंजुम',
तुमने इस शहरमें,
क्या आग लगानी हैं कोई...
                               अंजुम सलीमी

5714
तमाम रात नहाया था,
शहर बारिशमें...
वो रंग उतर ही गए,
जो उतरने वाले थे.......
जमाल एहसानी

5715
दर-ओ-दीवारपें,
शक्लें सी बनाने आई...
फिर ये बारिश,
मिरी तन्हाई चुराने आई...
                        कैफ़ भोपाली

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