9 July 2017

1491 - 1495 प्यार ख़ुशी तलाश चेहरे फरेब कहानी अधूरी पनाह ज़िन्दगी बाज़ार इश्क़ तरह लुट किताब इम्तेहान शायरी


1491
किसी चेहरेपर...
ख़ुशीकी तलाश न कर ,
हर चेहरा फरेब हैं,
और हर कहानी अधूरी...!!
1492
लौट आऊँगा फिरसे,
तेरी पनाहोंमें ऐ ज़िन्दगी.....
बाज़ार-ए-इश्क़में
पूरी तरह लुटने तो दे मुझे.......!
1493
अभी तो,
प्यारकी किताब खोली ही थी…
और ना जाने कितने,
इम्तेहान आ गए........
1494
किसी औरकी दौलत, किसीके किस कामकी
किसी औरकी शौहरत, किसीके किस कामकी
जो किसीके पासका अंधेरा न मिटा सके,
वो दूरसे दिखती रोशनी, किसीके किस काम की ?
1495
जब कभी टूटकर बिखरो,
तो बताना हमको...
तुम्हें रेतके जर्रोंसे भी,
चुन सकते हैं हम.......

8 July 2017

1486 - 1490 दिल चाहत आरज़ू धड़कन खुबी मतलब रिश्ते साथ अंदर कमियाँ आँख सज़ा शायरी


1486
मेरे अंदर भी कमियाँ ढेरसारी होंगी.......
पर एक खुबी भी हैं...
हम किसीके साथ,
मतलबके लिये रिश्ते नहीं रखते...
1487
खोई आँखोमें उनको सज़ा लिया,
आरज़ूमें उनकी चाहतको बसा लिया,
धड़कन भी अब ना ज़रूरी हमारे लिए,
जबसे दिलमें उन्हीको बिठा लिया...
1488
यादें बजती रहीं,
उनकी घुँघरुओंकी तरह...
कल रातभर...
फिर उन्होने मुझे सोने ना दिया.......
1489
मेरे गमने होश उनके भी खो दिए,
वो समझाते समझाते खुद ही रो दिए l
1490
फकीरोंके डेरेमें रोशनाई बहुत हैं,
इस मौसममें रहनुमाई बहुत हैं...

7 July 2017

1481 - 1485 इश्क दिल जमाने नज़र अकड़ मोम सीख शख्स आदत लूट चोर मुकदमा मसीहा शायरी


1481
जमानेकी नज़रमें,
अकड़के चलना सीखले दोस्त...!
मोमका दिल लेकर चलोगे...
तो लोग जलाते रहेंगे...!

1482
छोड तो सकता हूँ मगर...
छोड नहीं पाते उसे l
वो शख्स.......
मेरी बिगडी आदतकी तरह हैं !

1483
जाने किस किसको लूटा हैं,
इस चोरने मसीहा बनकर...
के आओ सब मिलकर,
इश्कपें मुकदमा कर दे......

1484
अगर रेतमें लिखा होता,
तो मिटा भी देते...
उन्होने तो दिलकी,
दहलीज़पर क़दम रख़ा हैं...

1485
बेवजह ही आए वो,
मेरी जिन्दगीमें...
पर वजह बन गये हैं,
जिन्दगी जीनेकी...!

5 July 2017

1476 - 1480 रात जान दरवाजा लूटेरा साथ शाम गम आँख जाम वादा काम जीना शायरी


1476
हर रात जान-बुझकर रखता हूँ
दरवाजा खुला . . . !
शायद कोई लूटेरा,
मेरा गम भी लूट ले !!!
1477
जीनी थी जो तेरे साथ, अभी वो शाम बाकी हैं,
पीना था जो तेरी आँखोंसे, अभी वो जाम बाकि हैं,
वादा किया था हमने जो, तुझको भुलाके जीनेका,
खुदको मिटानेका, अभी वो काम बाकी हैं !
1478
मत पूछो शीशेको उसकी...
टूट जानेकी वज़ह,
उसने भी किसी पत्थरको,
अपना समझा होगा...!
1479
सौ दुश्मन बनाए हमने,
किसीने कुछ ना कहां,
एकको हमसफर क्या बनाया,
सौ उँगलियाँ उठ गई.......
1480
बहुत शौक था...
सबको जोड़के रखनेका जफर।
होश तब आया जब,
अपने वजूदके टुकड़े देखे।

4 July 2017

1471 - 1475 दिल मोहब्बत शाम चिराग मोल पेड़ छाँव हकीक़तसे वाकिफ ज़िन्दगी बर्बाद शायरी


1471
शाम होते ही चिरागोंको बुझा देता हूँ,
मेरा दिल ही काफी हैं...
तेरी यादमें जलनेके लिए...

1472
तुम मुझसे दोस्तीका मोल,
मत पूछना कभी,
तुम्हे किसने कहां,
की पेड़ छाँव बेचते हैं ?

1473
यूँ तो मोहब्बतकी सारी,
हकीक़तसे वाकिफ हैं हम,
पर उसे देखा तो सोचा,
चलो ज़िन्दगी बर्बाद कर ही लेते हैं…

1474
ये लफ्ज़-ए-मोहब्बत हैं,
तुमसे बातो बातो मैं निकलते है जुबांसे,
और लोग शायरी समझकर,
वाह वाह किया करते हैं...!

1475
आओ ना मिलकर खोदे,
कब्र दिलकी,
कमबख्त बड़ी बड़ी ख्वाहिशें,
करने लगा हैं ...!!!

3 July 2017

1466 - 1470 जिन्दगी प्यारी आँख आँसू शर्त जीत पलके बरस पुरानी यादें रिश्ता दर्द‎ शायरी


1466
हम नहीं जीत सके उनसे...
वो ऐसी शर्त लगाने लगे...
प्यारीसी आँखोंको...
मेरी आँखोंसे लडाने लगे...
हम शायद जीत भी जाते...
पर पलके हमने तब झपकाई...
जब उनकी पलकोंसे आँसू आने लगे...
1467
थमके रह जाती हैं जिन्दगी,
 "तब".......
......."जब"...
 जमके बरसती हैं पुरानी यादें l
1468
तेरा ऐसा भी क्या रिश्ता हैं ?
दर्द‎ कोई भी हो...
याद‎ तेरी ही आती हैं.......
1469
मेरी रातें...
मेरे दिन,
सब ख़ाक हैं,
उनके बिन...
1470
जब तक बिके नहीं थे हम,
कोई पुछता न था...
तुने खरीदके में,
अनमोल कर दिया !

1461 - 1465 जिंदगी मोहब्बत शहर तमाम इज्जतदार बदनाम आत्मकथा फर्क परख यकीन पूरे अधूरे खुदखुशी शायरी


1461
शहरके तमाम इज्जतदारोंने,
करली खुदखुशी ।
जब एक बदनाम औरतने,
आत्मकथा लिखनी चाही अपनी ।।

1462
"बड़ा फर्क हैं,
तेरी और मेरी मोहब्बतमें...
तू परखती रहीं, और ...
हमने जिंदगी यकीनमें गुजार दी..."

1463
बिन उनके,
यूँ तो हम अधूरे नहीं हैं.....!!
पर जाने फ़िर भी क्यूँ...
हम पूरे भी नहीं हैं.......!!

1464
बड़ी तब्दीलियाँ लाया हूँ,
अपने आपमें लेकिन,
बस तुमको याद करनेकी,
वो आदत अब भी हैं...

1465
हमारे दिलके दफ़्तरमें,
तबादले कहाँ हुज़ूर...?
यहाँ जो एक बार आया,
बस यहीं रह गया…

1 July 2017

1456 - 1460 जिंदगी दिन सामना हौसला तन्हाई अंगार सुलग दुश्मन यार मुस्कुरा जलन शायरी


1456
जिंदगीमें कभी किसी,
बुरे दिनसे सामना हो जाए...
तो इतना हौसला ज़रूर रखना कि,
दिन बुरा था, जिंदगी नहीं...!

1457
"काँटोसी चुभती हैं तन्हाई,
अंगारोंसी सुलगती हैं तन्हाई,
कोई आकर हम दोनोंको ज़रा हँसा दे,
मैं रोता हूँ तो रोने लगती हैं तन्हाई l

1458
सिर्फ साँसें चलते रहनेको ही,
ज़िंदगी नहीं कहते.....!
आँखोंमें कुछ ख़्वाब और
दिलमें उम्मीदें होना भी ज़रूरी हैं.......!

1459
आज एक दुश्मनने,
मेरे गले लगके कहां,
यार...
इतना मत मुस्कुराया कर,
बहुत जलन होती हैं...

1460
एहसास थकाँनका मुझे,
पलभर नहीं होता;
रास्तेमें अगर...
मीलका पत्थर नहीं होता...!

1451 - 1455 इश्क चाँद मुकद्दर गम सीने बदनाम तन्हा आँख परदे नम बात सिलसिले बुरा वक्त शायरी


1451
मेरा और उस "चाँद" का,
मुकद्दर एक जैसा हैं "दोस्त"...!
वो "तारों" में तन्हा,
मैं "यारों" में तन्हा.....।।

1452
सो जाओ मेरी तरह तुम भी,
गमको सीनेमें छुपाकर
रोने या जागनेसे कोई मिलता,
तो हम तन्हा ना होते।

1453
हुए बदनाम फिरभी,
ना सुधर पाये हम,
फिर वहीं इश्क; वहीं शायरी और...,
वहीं तुम।

1454
आँखोंके परदे भी नम हो गये हैं,
बातोंके सिलसिले भी कम हो गये हैं,
पता नहीं गलती किसकी हैं,
वक्त बुरा हैं या बुरे हम हो गये हैं !

1455
दौलत नहीं, शोहरत नहीं,
न 'वाह' चाहिए...
"कैसे हो"..?
दो लफ्जकी परवाह चाहिए...

29 June 2017

1446 - 1450 दिल प्यार इश्क़ सब्र इंतेहा बाह हद ख्वाब आँख इबादत जन्नत नींद गोद शायरी


1446
प्यामें हमारे सब्रकी,
इंतेहा हो गयी.....
किसी औरके लिये रोतें रोतें,
वो मेरी बाहोमें सो गयी...

1447
इश्क़में ना जाने कब हम,
हदसे गुज़र गये...
कई सारे ख्वाब मेरी,
आँखोंमें भर गये...

1448
बड़ी इबादतसे पुछा था मैने,
खुदासे जन्नतका पता...
थककर नींद आयी तो खुदाने,
माँकी गोदमें सुला दिया…

1449
आपकी इस दिल्लगीमें,
हम अपना दिल खो बैठे...
कल तक उस खुदाके थे,
आज आपके हो बैठे.......

1450
कुछ वो हसीन हैं,
कुछ मौसम रंगीन हैं,
तारीफ करूँ या चुप रहूँ,
जुर्म दोनो संगीन हैं !!!

28 June 2017

1441 - 1445 मोहब्बत बेइंतहा दिन रात खुशियाँ उम्र एहसास वक्त धड़कन नाम बेहतर जान शायरी


1441
खुशियाँ बटोरते बटोरते उम्र गुजर गई,
पर खुश ना हो सके,
एक दिन एहसास हुआ,
खुश तो वो लोग थे जो खुशियाँ बांट रहे थे !

1442
जब वक्तकी धड़कनको थाम लेता हैं कोई,
जब हम सोते हैं रातोंमें और नाम लेता हैं कोई,
मोहब्बत उनसे बेइंतहा हो जाती हैं दोस्तो.....
जब हमसे बेहतर हमें जान लेता हैं कोई.......

1443
नज़रें छुपाकर क्या मिलेगा,
नज़रें मिलाओ,
शायद...
हम मिल जाए.......!

1444
उसके सिवा किसी औरको चाहना,
मेरे बसमें नहीं हैं l 
ये दिल उसका हैं,
अपना होता तो बात और होती l

1445
भुलाकर दर्द-ओ-गम ज़िंदगीके...
इश्क़के खुमारमें जी लेंगे,
बसाकर मोहब्बतका आशियाना,
यादोंके हिसारमें जी लेंगे...!

26 June 2017

1436 - 1440 सौदा अदब खरीद मीठे झूठ बोल कड़वे सच अज़ीज़ छीन ख़्वाहिशें ख़्वाब परिंदे शाम शायरी


1436
कोई तो मिला जिसने,
सौदा करना सिखा दिया...
वर्ना बड़े अदबसे,
हर चीज खरीद लेता था...!

1437
सीख रहा हूँ मैं भी, अब...
मीठे झूठ बोलनेकी कला...!
कड़वे सचने हमसे, ना जाने...
कितने अज़ीज़ छीन लिए.....॥

1438
ख़्वाहिशें जो चल न सकी जमीं पर,
ख़्वाबोंके परिंदे बन लौट आई हैं...
शाम ढलनेपर !!!

1439
उड़ा भी दो सारी रंजिशें,
इन हवाओंमें यारों,
छोटीसी जिंदगी हैं
नफ़रत कब तक करोगे ?

1440
जहाँमें कुछ सवाल,
जिंदगीने ऐसे भी छोडे हैं,
जिनका जवाब हमारे पास...
सिर्फ खामोशी हैं !!!

25 June 2017

1431 - 1435 दिलजिंदगी वजूद मौत मोहोलत कमजोर दिवार वास्ता ख़बर नज़र गैर हाल शायरी


1431
अपने वजूदपर,
इतना न इतरा ऐ-जिंदगी,
वो तो मौत हैं...
जो तुझे मोहोलत देती जा रही हैं ।

1432
लूट लेते हैं अपने ही,
वरना गैरोंको क्या पता,
की दिलकी दिवार,
कहाँसे कमजोर हैं...।

1433
वास्ता नहीं रखना तो;
नज़र क्यों रखती हो,
किस हालमें हूँ ज़िंदा,
ये ख़बर क्यों रखती हो...

1434
घड़ी-घड़ी वो,
हिसाब करने बैठ जाते हैं l
जबकि पता हैं,
जो भी हुआ, बेहिसाब हुआ.......!

1435
युँही किसीकी यादमें रोना फ़िज़ूल हैं,
इतने अनमोल आँसू खोना फ़िज़ूल हैं,
रोना हैं तो उनके लिये जो हमपें निसार हैं,
उनके लिये क्या रोना जिनके आशिक़ हज़ार हैं...!

1426 - 1430 दिल रूह शामिल मुस्करा आँख नजरें याद बात फरियाद कोशिश बहाना सूफ़ियाना आशियाना जुर्म शायरी


1426
जो आँखोंमें रहते हैं, उन्हे याद नहीं करतें;
जो दिलमें रहते हैं, उनकी बात नहीं करतें;
उन्हे क्या पता, की हमारी रूहमें वो बस चुके हैं,
तभी तो मिलनेंकी हम, फरियाद नहीं करते !

1427
अकेले हम ही शामिल नहीं हैं,
इस जुर्ममें जनाब…
नजरें जब मिली थी......
मुस्कराए तुम भी थे !!!

1428
उनकी यादोंको हमने सूफ़ियाना रखा,
अपने दिलमें उनका आशियाना रखा,
जितनी बार हमने उनसे मिलनेकी कोशिश की,
उसने हर बार एक नया बहाना रखा...

1429
कोई कह दे उनसे जाकर,
की छतपें ना जाया करे...
शहरमें बेवजह,
ईदकी तारीख बदल जाती हैं......

1430
एक बीज " मोहब्बत " का,
क्या बो दिया यारों...
सारी फसल " दर्द " की,
काटनी पडी......ll