1471
शाम होते ही चिरागोंको बुझा देता हूँ,
मेरा दिल ही काफी है...
तेरी याद मे जलने के लिए...
1472
तुम मुझसे दोस्ती का मोल,
मत पूछना कभी,
तुम्हे किसने कहा,
की पेड़ छाँव बेचते है ?
1473
यूँ तो मोहब्बत की सारी
हकीक़त से वाकिफ है हम,
पर उसे देखा तो सोचा
चलो ज़िन्दगी बर्बाद कर ही लेते है…
1474
ये लफ्ज़-ए-मोहब्बत है,
तुमसे बातो बातो मैं निकलते है जुबां से,
और लोग शायरी समझकर,
वाह वाह किया करते है...!
1475
आओ ना मिलकर खोदे कब्र दिल की,
कमबख्त बड़ी बड़ी ख्वाहिशें करने लगा है ...!!!
No comments:
Post a Comment