4 July 2017

1471 - 1475 दिल मोहब्बत शाम चिराग मोल पेड़ छाँव हकीक़तसे वाकिफ ज़िन्दगी बर्बाद शायरी


1471
शाम होते ही चिरागोंको बुझा देता हूँ,
मेरा दिल ही काफी हैं...
तेरी यादमें जलनेके लिए...

1472
तुम मुझसे दोस्तीका मोल,
मत पूछना कभी,
तुम्हे किसने कहां,
की पेड़ छाँव बेचते हैं ?

1473
यूँ तो मोहब्बतकी सारी,
हकीक़तसे वाकिफ हैं हम,
पर उसे देखा तो सोचा,
चलो ज़िन्दगी बर्बाद कर ही लेते हैं…

1474
ये लफ्ज़-ए-मोहब्बत हैं,
तुमसे बातो बातो मैं निकलते है जुबांसे,
और लोग शायरी समझकर,
वाह वाह किया करते हैं...!

1475
आओ ना मिलकर खोदे,
कब्र दिलकी,
कमबख्त बड़ी बड़ी ख्वाहिशें,
करने लगा हैं ...!!!

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