15 July 2017

1516 - 1520


1516
ए उम्र, माना कि तू बडी हस्ती है।
जब चाहे मेरा बचपन छीन सकती है। ।
पर गुरूर मत कर अपनी हस्ती पर।
मुझे भी नाज है अपनी मस्ती पर।।
गर है दम तो इतनी सी कर खता।
बचपन तो छीन लिया...,
बचपना छीन कर बता।।

1517
तेरी मोहब्बत,,
जैसे सरकारी नौकरी हो,
नौकरी तो खत्म हुई,
अब दर्द मिल रहा है पेंशन की तरह...

1518
झूठ कहते हो तुम सब लोग
मोहब्बत सब कुछ छीन लेती है...
हमने किसी से मोहब्बत करके
गमो का खजाना पा लिया है...

1519
मेरे हाथों में उनका हाथ आया
तो महसूस हुआ.......
ज़िंदगी ही हाथ लग गई हो जैसे...

1520
किसी की याद ने
ज़ख्मों से भर दिया सीना...
हर इक सांस पे शक़ है
कि आखिरी होगी.......

No comments:

Post a Comment