28 July 2017

1576 - 1580 दिल मोहब्बत जिन्दगी आँखे नशा शराब गुरूर सम्भल नींद खातिर शायरी


1576
न रख इतना गुरूर,
अपने नशेमें ए शराब !
तुझसे ज्यादा नशा रखती हैं,
आँखे किसीकी !

1577
रात तो क्या,
पूरी जिन्दगी भी जागकर,
गुजार दूँ तेरी खातिर,
एक बार तू कहकर तो देख,
कि," मुझे तेरे बिना नींद नहीं आती..."

1578
मेरे दिलसे खेल तो रहे हो तुम...
पर जरा सम्भल के;
ये थोडा टूटा हुआ हैं;
कहीं तुम्हे ही लग ना जाए..!

1579
हर चीज़में खुशबु हैं
तेरे होनेकी...!
गजब निशानियाँ दी हैं
तूने चाहतकी.....!!!

1580
क्यूँ हर बातमें कोसते हो
तुम लोग नसीबको,
क्या नसीबने कहा था...
की मोहब्बत कर लो !

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