18 July 2017

1536 - 1540


1536
दिन भी अच्छे गुजर रहे थे,
और खुशिया भी .....
ए वक्त ...
बता क्या मिला तुझे .....
उसको मुझसे जुदा करके .......

1537
"मुझसे दोस्त नहीं बदले जाते,
चाहे लाख दूरी होने पर,
यहाँ लोगों के भगवान बदल जाते हैं,
एक मुराद ना पूरी होने पर।।"

1538
रात हुई जब शाम कॆ बाद,
तॆरी याद आई हर बात कॆ बाद,
हमनॆ खामोश रहकर भी देखा,
तॆरी आवाज आई हर सांस कॆ बाद।

1539
चल आ तेरे पैरो पर,
मरहम लगा दूं ऐ मुक़द्दर...
कुछ चोटे तुझे भी आई होगी,
मेरे सपनो को ठोकर मारकर.......

1540
ना छेड़ किस्सा उल्फ़त का,
बड़ी लम्बी कहानी है...
मैं ज़िन्दगी से नहीं हारा,
ये किसी अपने की मेहरबानी है...

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