25 July 2017

1566 - 1570 जिन्दगी मोहब्बत साँस हद शर्त मुलाकात उसूल बिछड़ बेबस काबिल कागज शायरी


1566
चंद लम्होंकी मोहब्बतमें,
यूँ भी ना हदसे गुजर जाना,
शर्तोंकी मुलाकातोंसे बेहतर हैं,
उसूलोंपर बिछड़ जाना...!

1567
सुनो....
या तो मिल जाओ,
या बिछड़ जाओ...!
यूँ साँसोंमें रहकर,
बेबस ना करो......!!

1568
निकाल दिया उसने हमे अपनी जिन्दगीसे,
भीगे कागज कि तरहा।
ना लिखनेके काबिल छोडा,
ना जलानेके काबिल।।

1569
मुहब्बत नहीं हैं नाम,
सिर्फ पा लेनेका...
बिछड़के भी अक्सर दिल,
धड़कते हैं साथ-साथ...!

1570
ना जाने कौन मेरे,
हक़में दुआ पढता हैं,
डूबता भी हु तो,
समुन्दर उछाल देता हैं !!!

No comments:

Post a Comment