12 July 2017

1506 - 1510 दिल ज़िक्र मुस्कुरा मौजूद हिचकी शाम कदम निशान खरीद घर गाँव शहर राह करोड आंगन शायरी


1506
कहीं बैठी वो मेरा ज़िक्र कर,
मुस्कुरा रहीं होगी...
ये हिचकी शामसे,
यूँ ही तो नहीं आ रही होगी.......

1507
अब भी मौजूद हैं इस दिलमें,
तेरे कदमोंके निशान...
तेरे बाद हमने इस राहसे,
किसीको गुजरने नहीं दिया...

1508
खरीद तो लेते हैं लोग,
करोडोंका घर शहरमें...
लेकिन आंगन दिखाने,
बच्चोको अब भी गाँव ही आते हैं.....

1509
प्रेम एक भाषा हैं...
जिसे हर कोई बोलता हैं...
पर समझता वहीं हैं...
जिसके पास 'दिल' हैं...!!

1510
हमने मांगा था साथ उनका,
वो जुदाईका गम दे गये...
हम यादोंके सहारे जी लेते,
वो भूल जानेकी कसम दे गये...

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