5106
एक परवाह ही बताती
है कि,
ख़्याल कितना है;
वरना कोई तराजू
नहीं होता,
रिश्तोमें.......
5107
हम भी मुस्कुराते
थे कभी,
बेपरवाह
अंदाज़में...
देखा है खुदको आज,
एक पुरानी तस्वीरमें...!
5108
मेरे लफ्जोंको,
वो
तासीर दे, ऐ
खुदा...
लोग वाह-वाह
ना करें,
पर
परवाह करे.......
5109
उजड़ जाते हैं,
सिरसे पाँव
तक वो लोग;
जो किसी बेपरवाहसे,
बेइंतहा मोहब्बत
करते हैं...
5110
उनसे क्या नाराजगी
रखना ऐ जिंदगी...
जिन्हें
तुम्हारी परवाह तक भी
नहीं.......