17 March 2020

5621 - 5625 प्यार ऐतबार शक इनक़ार इन्तहा जुदाई दुनिया सितम उम्मीद सबर दावा दुआ वफ़ा शायरी


5621

प्यार इतना क़रना क़ी हद्द रहें,
मगर ऐतबार भी इतना क़रना क़ी   रहें;
वफ़ा इतनी क़रना क़ी बेवफ़ाई हो,
और दुआ बस इतनी क़रना क़ी क़भी जुदाई हो ll

5622
इनक़ा रते रते,
रार  बैठे !
हम तो  बेवफ़ासे,
प्यार  बैठे.......

5623
पी क़र रात हम उन्हें भुलाने लगे,
नशेमें गमोक़ो भुलाने लगे...
ये शराब भी बेवफ़ा निक़ली,
नशेमें वो और भी ज्यादा याद आने लगे...!

5624
मोहब्बतक़ा नतीजा,
दुनियामें हमने बुरा देखा...
जिन्हे दावा था वफ़ाक़ा,
उन्हें भी हमने बेवफ़ा देखा...

5625
मत पूछ मेरे सबरक़ी इन्तहा क़हाँ  हैं...
तू क़र ले सितम तेरी ताक़त जहाँ  हैं...
वफ़ाक़ी उम्मीद जिन्हे होगी उन्हें होगी,
हमें तो देखना हैं तू बेवफ़ा क़हाँ  हैं...?

16 March 2020

5616 - 5620 इश़्क परेशाँ झूठ नौबत वादा ठोकर पसंद नाज़ हिचकी वफ़ा शायरी


5616
परेशाँ हैं वो,
झूठा इश़्क करके...
वफ़ा करनेकी,
नौबत गई हैं...!

5617
शायरीसे इस्तीफ़ा दे रहा हूँ,
किसी बेवफ़ाने...
फिर वफ़ाका,
वादा किया हैं...!

5618
जानता हूँ मैं,
अभी भी चाहती हैं मुझे;
ज़िद्दी हैं वो थोड़ीसी,
मगर बेवफ़ा नहीं...

5619
जब तक लगे,
बेवफ़ाईकी ठोकर...
हर किसीको,
अपनी पसंदपर नाज़ होता हैं।

5620
हिचकियोंमें,
वफ़ा ढूंढ रहा था;
कंबख्त वो भी ग़ुम हो गई,
दो घूंट पानीमें.......

15 March 2020

5611 - 5615 दिल क़दम औकात दीवार नादान मुद्दत जिंदगी शायरी


5611
बड़ी चालाक हैं ये जिंदगी,
हमें रोज़ नया कल देकर...
हमसे अपना आज़,
छीन लेती हैं.......

5612
क़दम क़दमपें एक,
नया इम्तहान रखती हैं;
ज़िंदगी तू भी मेरा,
कितना ध्यान रखती हैं !

5613
जिंदगी,
बस इतना ही चाहिये तुजसे;
कि जम़ीन पर बैठूँ तो...
लोग उसे बडप्पन कहें,
औकात नहीं.......!

5614
खुदा,
जिंदगी भले छोटी दे देना...
मगर देना ऐसी,
कि मुद्दतोंतक लोगोंके,
दिलोंमे जिंदा रहें.......!

5615
एक और ईंट गिर गई,
दीवार--जिंदगीसे...
नादान कह रहे हैं,
सालगिरह मुबारक हो।

5606 - 5610 साँस दखल ख्वाहिश रास्ते रूह मँजिल इश्क़ वजूद हालात जिंदगी शायरी


5606
उसे लिख पाते हैं शायरीमें,
इसलये चलती साँस हैं...
ना करो बेदखल इन नज्मोसे,
वरना जिंदगी जिंदा लाश हैं...

5607
इतना आसान नहीं हैं,
अपने ढंगसे जिंदगी जी पाना l
अपनोंको भी खटकने लगते हैं,
जब अपने लिये जीने लगते हैं ll

5608
ख्वाहिशोने ही भटकाये हैं,
जिंदगीके रास्ते... वरना;
रूह तो उतरी थी ज़मींपें,
मँजिलका पता लेकर...

5609
बेवफा तेरे सजदेके लिए,
हर साँसको बिखरते देखा हैं...
जिंदगी हर मोड़पर इश्क़में,
अपना वजूद टूटते देखा हैं...

5610
जिंदगी सुन,
तू यहींपे रुकना...
हम हालात बदलके आते हैं...!

14 March 2020

5601 - 5605 मोहब्बत प्यार पल ख़ुशी याद तराना अफसाना दीवाना इंतजार चाह जिंदगी शायरी


5601
हर पलमें प्यार हैं,
हर पलमें ख़ुशी हैं...
खो दो तो यादे हैं,
जि लो तो जिंदगी हैं...

5602
प्यार तो जिंदगीका एक अफसाना हैं;
इसका अपना ही एक तराना हैं;
सबको मालूम हैं कि मिलेंगे सिर्फ आँसू...
पर जाने क्यों, दुनियाँमें हर कोई इसका दीवाना हैं...

5603
माथेको चूम लूँ मैं और,
उनकी जुल्फ़े बिखर जाये...!
इन लम्होंके इंतजारमें कहीं,
जिंदगी गुज़र जाये.......!

5604
तुम गुजार ही लोगे जिंदगी,
हर फनमें जो माहिर हो...
हमे तो कुछ आता ही नही,
बस एक तुम्हे चाहनेके सिवा...!

5605
यूँ तो मोहब्बतकी सारी,
हकीकतसे वाकिफ हैं हम...
पर उन्हें देखा तो लगा,
चलो जिंदगी बर्बाद कर ही लेते हैं...!

12 March 2020

5596 - 5600 प्यार इजहार ताबीज़ मशहूर हालत हुस्न जरूरत क़यामत सादगी शायरी


5596
कोई ताबीज़ ऐसा दो कि,
मैं चालाक हो जाऊं...
बहुत नुकसान देती हैं मुझे,
ये सादगी मेरी.......

5597
मेरी सादगीही,
गुमनामीमें रखती हैं मुझे...
जरा सा बिगड़ जाऊं,
तो मशहूर हो जाऊं...

5598
तेरी हालतसे लगता हैं,
तेरा अपना था कोई...
वरना इतनी सादगीसे,
बरबाद कोई गैर नहीं करता...

5599
हुस्न वालोंको,
क्या जरूरत हैं संवरनेकी...
वो तो सादगीमें भी,
क़यामतकी अदा रखते हैं...!

5600
बहुत खुबसूरतीसे उसने,
अपने प्यारका इजहार किया...
ये हवाएँ भी थम गयी,
उसकी सादगी देखकर.......!

5591 - 5595 होठ मुस्कुराहट खामोशी नेकी जिस्म लिबास शायरी



5591
होठोंको जब,
लिबासकी जरूरत हो...
मशवरा हैं की,
मुस्कुराहट पहना दो...!

5592
ये जो मुस्कराहटका,
लिबास पहना हैं...
दरअसल खामोशियोंको ही,
रफ़ू करवाया हैं.......

5593
हरे शजर सही,
खुश्क घास रहने दो;
ज़मींके जिस्मपर,
कुछ लिबास रहने दो...!

5594
सिर्फ लिबास ही,
महँगा हुआ हैं साहब;
आदमी आज भी,
दो कौड़ीका ही हैं...

5595
तेरी नेकीका लिबास ही,
तेरा बदन ढकेगा, बन्दे;
सुना हैं उपर वालेके घर,
कपड़ोकी दुकान नही होती...

10 March 2020

5586 - 5590 खुशी ग़म नादानियाँ जवाँ जिन्दगी लहू रंग शायरी


5586
अब खुशी हैं,
कोई ग़म रुलानेवाला...
हमने अपनालिया हर रंग,
ज़माने वाला.......
                         निदा फ़ाज़ली

5587
अब लोग पूछते हैं हमसे,
तुम कुछ बदल गए हो...
बताओ टूटे हुए पत्ते अब,
रंग भी बदलें क्या.......

5588
फ़क़त बाल रंगनेसे,
कुछ नहीं होता गालिब।
नादानियाँ भी किया करो,
जवाँ बने रहनेके वास्ते।।

5589
कौन कहता हैं,
काला रंग अशुभ होता हैं;
स्कूलका वो ब्लैक बोर्ड,
लोगोंकी जिन्दगी बदल देता हैं...!

5590
मजहब ना पूछो गालिब,
बस गले मिलने दो...
सुना हैं सबके लहूके रंग,
एक जैसे होते हैं.......

9 March 2020

5581 - 5585 प्रेम प्यार मोहब्बत नज़्म सिलसिला चाहत हुस्न चेहरा इज़हार अल्फ़ाज़ रंग शायरी


5581
मोहब्बतका कोई रंग नहीं,
फिर भी वो रंगीन हैं...
प्यार का कोई चेहरा नहीं,
फिर भी वो हसीन हैं.......!

5582
ये किसकी चाहतका रंग हैं,
जो मद्धम नहीं होता...
इतने नज़्म लिख डाले,
फिर भी सिलसिला खत्म हीं होता...!

5583
हुस्न रंगतका,
मोहताज कभी नहीं होता...
आलिम जेहन हो तो,
फिर चेहरा नहीं देखा जाता...!


5584
मोहब्बतके सभी रंग बहुत ख़ूबसूरत हैं,
लेकिन.......
सबसे ख़ूबसूरत रंग हीं हैं,
जिसमें इज़हारके लिए अल्फ़ाज़ ना हों...!

5585
राधा कृष्ण का प्रेम,
तो अब परवान चढ़ेगा...
रसियापर फागुनका,
रंग जब चढ़ेगा.......!

5576 - 5580 पतझड़ नज़र महबूब खूबसूरत जख्म बग़ावत आँसमा दास्ताँ मौसम शायरी



5576
पतझड़में सिर्फ,
पत्ते गिरते हैं;
नज़रोंसे गिरनेका...
कोई मौसम नहीं होता...

5577
इतना भी खूबसूरत,
ना हुआ कर मौसम...
हर किसीके पास,
महबूब नहीं होता...

5578
कुछ तो तेरे मौसम ही,
मुझे रास कम आए...
और कुछ मेरी मिट्टीमें,
बग़ावत भी बहुत थी...

5579
जिसके आनेसे,
मेरे जख्म भरा करते थे...
अब वो मौसम,
मेरे जख्मोंको हरा करता हैं...

5580
हमें क्या पता था,
ये मौसम यूँ रो पड़ेगा...
हमने तो आँसमांको बस,
अपनी दास्ताँ सुनाई हैं...!

7 March 2020

5571 - 5575 मोहब्बत याद जिन्दगी फुर्सत गलियाँ खुशबू लफ़्ज सफर जुदाई महक शायरी


5571
मिली जो फुर्सत तो,
आएंगे और पियेंगे ज़रूर...
सुना हैं तुम चाय बनाती हो,
तो गलियाँ महक उठती हैं...!

5572
उनकी यादोंकी बूँदें,
बरसी जो फिरसे...
जिन्दगीकी मिट्टी,
महकने लगी हैं...!


5573
इतनी बिखर जाती हैं,
तुम्हारे नाम की खुशबू हमारे लफ़्जोंमें...
लोग पूछने लगते हैं कि,
क्यों महकती रहती हैं शायरी तुम्हारी...!

5574
उनके उतारे हुए दिन,
पहनके अब भी मैं...
उनकी महकमें कई रोज़,
काट देता हूँ.......!


5575
सफर--मोहब्बत,
अब खतम ही समझिए साहब...
उनके रवैयेसे अब,
जुदाईकी महक अने लगी हैं...