9 March 2020

5576 - 5580 पतझड़ नज़र महबूब खूबसूरत जख्म बग़ावत आँसमा दास्ताँ मौसम शायरी



5576
पतझड़में सिर्फ,
पत्ते गिरते हैं;
नज़रोंसे गिरनेका...
कोई मौसम नहीं होता...

5577
इतना भी खूबसूरत,
ना हुआ कर मौसम...
हर किसीके पास,
महबूब नहीं होता...

5578
कुछ तो तेरे मौसम ही,
मुझे रास कम आए...
और कुछ मेरी मिट्टीमें,
बग़ावत भी बहुत थी...

5579
जिसके आनेसे,
मेरे जख्म भरा करते थे...
अब वो मौसम,
मेरे जख्मोंको हरा करता हैं...

5580
हमें क्या पता था,
ये मौसम यूँ रो पड़ेगा...
हमने तो आँसमांको बस,
अपनी दास्ताँ सुनाई हैं...!

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