29 March 2020

5656 - 5660 प्यार ज़िन्दगी ज़ख्म मोहब्बत ज़ुर्म बेरुखी बंदगी सितम शायरी


5656
हिसाब-किताब हमसे पूछ,
अब -ज़िन्दगी...
तूने सितम नही गिने,
तो हमने भी ज़ख्म नही गिने...!

5657
जब भी बही खाते निकलेंगे,
तेरे मेरे क़र्ज़के...
तुझपें मेरी मोहब्बत उधार निकलेगी,
और मुझपें तेरे सितम.......!

5658
मुझपर तू जो सितम करती हैं,
बेवफ़ा समझकर...
मैं भुला देता हूँ वो सब कुछ,
तुझे खुदा समझकर.......!

5659
कितने सितम करोगे,
इस टूटे हुए दिल पर...
थक जाओ तो बताना ज़रूर,
मेरा ज़ुर्म क्या था.......

5660
सितमको हमने बेरुखी समझा,
प्यारको हमने बंदगी समझा;
तुम चाहे हमे जो भी समझो,
हमने तो तुम्हे अपनी ज़िन्दगी समझा ll

No comments:

Post a Comment