16 March 2020

5616 - 5620 इश़्क परेशाँ झूठ नौबत वादा ठोकर पसंद नाज़ हिचकी वफ़ा शायरी


5616
परेशाँ हैं वो,
झूठा इश़्क करके...
वफ़ा करनेकी,
नौबत गई हैं...!

5617
शायरीसे इस्तीफ़ा दे रहा हूँ,
किसी बेवफ़ाने...
फिर वफ़ाका,
वादा किया हैं...!

5618
जानता हूँ मैं,
अभी भी चाहती हैं मुझे;
ज़िद्दी हैं वो थोड़ीसी,
मगर बेवफ़ा नहीं...

5619
जब तक लगे,
बेवफ़ाईकी ठोकर...
हर किसीको,
अपनी पसंदपर नाज़ होता हैं।

5620
हिचकियोंमें,
वफ़ा ढूंढ रहा था;
कंबख्त वो भी ग़ुम हो गई,
दो घूंट पानीमें.......

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