5651
नाराजगीका
सितम,
इस तरह छाया
हुआ हैं की...
समजमें नही आ
रहा हैं,
वो हमसे नाराज
हैं या हम
उनसे...
5652
ग़ज़लका
शेर तो होता
हैं,
बस किसी एकके
लिए;
मगर सितम हैं
कि,
सबको सुनाना पड़ता हैं...!
5653
किसे फ़िक़र हैं
ज़मानेके,
ज़ुल्मो सितमकी...
दर्द अच्छे लगते हैं,
जब वो ज़ख्मोपें
हाथ रखते हैं...
5654
सितम पर सितम,
कर रहे हैं
वह मुझपर,
मुझे शायद अपना,
समझने लगे हैं...!
5655
करमके साथ सितम
भी,
बलाके रक्खे थे l
हर एक फूलने,
काँटे छुपा के
रक्खे थे ll
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