28 March 2020

5651 - 5655 नाराजगी ग़ज़ल फ़िक़र ज़माने ज़ुल्म ज़ख्म साथ सितम शायरी


5651
नाराजगीका सितम,
इस तरह छाया हुआ हैं की...
समजमें नही रहा हैं,
वो हमसे नाराज हैं या हम उनसे...

5652
ग़ज़लका शेर तो होता हैं,
बस किसी कके लिए;
मगर सितम हैं कि,
सबको सुनाना पड़ता हैं...!

5653
किसे फ़िक़र हैं ज़मानेके,
ज़ुल्मो सितमकी...
दर्द अच्छे लगते हैं,
जब वो ज़ख्मोपें हाथ रखते हैं...

5654
सितम पर सितम,
कर रहे हैं वह मुझपर,
मुझे शायद अपना,
समझने लगे हैं...!

5655
करमके साथ सितम भी,
बलाके रक्खे थे l
हर एक फूलने,
काँटे छुपा के रक्खे थे ll

No comments:

Post a Comment