5631
नीलाम कुछ इस
कदर हुए,
बाज़ार-ए-वफ़ामें
हम आज...
बोली लगाने वाले भी
वही थे,
जो कभी झोली
फैलाकर,
माँगा करते थे
हमींसे...
5632
मेरी दास्ताँ-ए-वफ़ा,
बस इतनी सी
हैं...
उसकी खातिर,
उसीको छोड़
दिया...
5633
इच्छाएँ
बड़ी बेवफ़ा होती
हैं,
कमबख्त पूरी होते
ही...
बदल जाती
हैं.......
5634
वफ़ा न कर
तो,
हमारी वफ़ाकी दाद ही
दे...
तिरे फ़िराक़को हम,
इंतिज़ार
कहते हैं...
रशीद कौसर फ़ारूक़ी
5635
न जाने कैसी
दिल्लगी थी,
उस बेवफासे.......
कि मैने आखिरी ख़्वाहिशमें
भी,
उसकी वफ़ा मांगी.......!
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