23 March 2020

5641 - 5645 मोहब्बत फ़िदा जिस्म खिलौने शिकायत वादा साहिल प्यास बेवफ़ाई वफ़ा शायरी


5641
बेवफ़ाईपें तेरी जी हैं फ़िदा...
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता...
                           मीर तक़ी मीर

5642
मैं सोचती हूँ कि,
इक जिस्मके पुजारीको,
मेरी वफ़ाने वफ़ाका,
सुहाग क्यूँ समझा...
नरेश कुमार शाद

5643
बेवफ़ा कहनेकी शिकायत हैं,
तो भी वादा-वफ़ा नहीं होता...
                      मोमिन ख़ाँ मोमिन

5644
तेरी वफाओंका समन्दर,
किसी और के लिए होगा...
हम तो तेरे साहिलसे,
रोज प्यासे ही गुजर जाते हैं...

5645
मोहब्बत कर सकते हो तो,
खुदासे करो...
मिट्टीके खिलौनोंसे कभी,
वफ़ा मिलती नहीं.......!

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