5611
बड़ी चालाक हैं ये
जिंदगी,
हमें रोज़ नया
कल देकर...
हमसे अपना आज़,
छीन लेती हैं.......
5612
क़दम क़दमपें एक,
नया इम्तहान रखती हैं;
ज़िंदगी तू भी
मेरा,
कितना ध्यान रखती हैं !
5613
ऐ जिंदगी,
बस इतना ही
चाहिये तुजसे;
कि जम़ीन पर बैठूँ तो...
लोग उसे बडप्पन
कहें,
औकात नहीं.......!
5614
ऐ खुदा,
जिंदगी भले छोटी
दे देना...
मगर देना ऐसी,
कि मुद्दतोंतक लोगोंके,
दिलोंमे
जिंदा रहें.......!
5615
एक और ईंट
गिर गई,
दीवार-ए-जिंदगीसे...
नादान कह रहे
हैं,
सालगिरह
मुबारक हो।
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