5591
होठोंको
जब,
लिबासकी
जरूरत हो...
मशवरा हैं की,
मुस्कुराहट
पहना दो...!
5592
ये जो मुस्कराहटका,
लिबास पहना हैं...
दरअसल खामोशियोंको ही,
रफ़ू करवाया हैं.......
5593
हरे शजर न
सही,
खुश्क घास रहने
दो;
ज़मींके
जिस्मपर,
कुछ लिबास रहने दो...!
5594
सिर्फ लिबास ही,
महँगा हुआ हैं
साहब;
आदमी आज भी,
दो कौड़ीका ही हैं...
5595
तेरी नेकीका लिबास ही,
तेरा बदन ढकेगा,
ऐ बन्दे;
सुना हैं उपर
वालेके घर,
कपड़ोकी दुकान नही होती...
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