8751
अक़्ससे अपने अग़र,
राह नहीं तुमक़ो तो ज़ान...
ये इशारेसे फ़िर,
आईनेमें क़्या होते हैं...
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
8752हम आपक़ो,देख़ते थे पहले...अब आपक़ी,राह देख़ते हैं.......क़ैफ़ी हैंदराबादी
8753
ऐ ग़म-ए-दुनिया,
तुझे क़्या इल्म तेरे वास्ते...
क़िन बहानोंसे तबीअत,
राहपर लाई ग़ई.......
साहिर लुधियानवी
8754या दिल हैं मिरा,या तिरा नक़्श-ए-क़फ़-ए-पा हैं...ग़ुल हैं क़ि इक़ आईना,सर-ए-राह पड़ा हैं.......मुंशी नौबत राय नज़र लख़नवी
8755
आक़र तिरी ग़लीमें,
क़दम-बोसीक़े लिए...
फ़िर आसमाँक़ी,
भूल ग़या राह आफ़्ताब.......!
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम