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ये राह-ए-तलब यारो,
ग़ुमराह भी क़रती हैं...
सामान उसीक़ा था,
ज़ो बे-सर-ओ-सामाँ था...
अतीक़ुल्लाह
9027तूने ही राह न दिख़ाई,तो दिख़ाएग़ा क़ौन...हम तिरी राहमें,ग़ुमराह हुए बैठे हैं...!!!ज़ितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
9028
ग़ुमराह क़ब क़िया हैं,
क़िसी राहने मुझे...
चलने लग़ा हूँ,
आप ही अपने ख़िलाफ़में...
अफ़ज़ल गौहर राव
9029मंज़िलोंसे ग़ुमराह भी,क़र देते हैं क़ुछ लोग़...हर क़िसीसे रास्ता पूछना,अच्छा नहीं होता.......
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मंज़िल तो मिल ही ज़ाएग़ी,
भटक़क़र ही सहीं...
ग़ुमराह तो वो हैं ग़ालीब,
ज़ो घरसे निक़ले ही नहीं.......!