22 August 2022

9026 - 9030 ख़िलाफ़ ग़ुमराह मंज़िल रास्ता राह शायरी

 

9026
ये राह--तलब यारो,
ग़ुमराह भी क़रती हैं...
सामान उसीक़ा था,
ज़ो बे-सर--सामाँ था...
                       अतीक़ुल्लाह

9027
तूने ही राह दिख़ाई,
तो दिख़ाएग़ा क़ौन...
हम तिरी राहमें,
ग़ुमराह हुए बैठे हैं...!!!
ज़ितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर

9028
ग़ुमराह क़ब क़िया हैं,
क़िसी राहने मुझे...
चलने लग़ा हूँ,
आप ही अपने ख़िलाफ़में...
                     अफ़ज़ल गौहर राव

9029
मंज़िलोंसे ग़ुमराह भी,
क़र देते हैं क़ुछ लोग़...
हर क़िसीसे रास्ता पूछना,
अच्छा नहीं होता.......

9030
मंज़िल तो मिल ही ज़ाएग़ी,
भटक़क़र ही सहीं...
ग़ुमराह तो वो हैं ग़ालीब,
ज़ो घरसे निक़ले ही नहीं.......!

21 August 2022

9021 - 9025 घड़ी डर ख़ाक़ सुलूक़ शान पुक़ार राह शायरी

 

9021
क़्या हो ग़र क़ोई घड़ीयाँ भी,
क़रम फ़रमाओ...
आप इस राहसे,
आख़िर तो ग़ुज़र क़रते हैं...
                        मीर मोहम्मदी बेदार

9022
वो राहें ज़िनसे अभी तक़,
नहीं ग़ुज़र मेरा...
लग़ा हुआ हैं,
इन्हीं रास्तोंक़ो डर मेरा...
मुस्लिम सलीम

9023
सुलूक़ और मारिफ़तक़ी,
राहें ख़ुली हैं शौक़त...
सो मैं शरीअतक़े,
मरहलेसे ग़ुज़र रहा हूँ...
                        शौक़त हाशमी

9024
इस राहसे ग़ुज़रे थे,
क़भी अहल--नज़र भी..
इस ख़ाक़क़ो चेहरेपें मिलो,
आँख़में डालो.......
शहज़ाद अहमद

9025
क़िस शानसे चला हैं,
मिरा शहसवार--हुस्न...
फ़ित्ने पुक़ारते हैं,
ज़रा हटक़े राहसे.......
                    ज़लील मानिक़पूरी

9016 - 9020 राहग़ीर शुक़्र बुलंद मोहब्बत सुहूलत राह शायरी

 

9016
मुझसे भी राहग़ीरसे भी,
राह यारक़ो...
यक़साँ हैं दोनों पाँवतले,
ख़ैर--शर क़ी राह.......
                      इमदाद अली बहर

9017
शैख़ साहबसे,
रस्म--राह क़ी ;
शुक़्र हैं ज़िंदग़ी,
तबाह क़ी ll
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

9018
हर बुलंदीसे,
बनें राहें नई...
हौसले क़ुछ,
आसमानी दे मुझे...
               मोनिक़ा सिंह

9019
बड़े ताबाँ बड़े रौशन,
सितारे टूट ज़ाते हैं l
सहरक़ी राह तक़ना,
ता सहर आसाँ नहीं होता ll
अदा ज़ाफ़री

9020
सराब अफ़्शाँ तवील राहें,
मोहब्बतोंक़ो बुला रही हैं...
उन्हें पता हैं क़ि हैं मोहब्बतमें ही,
सुहूलतक़ा इक़ सितारा.......
                                    रुची दरोलिया

19 August 2022

9011 - 9015 ख़ाक़ आँख़ अज़नबी मुसाफ़िर राह रास्ता शायरी

 

9011
ख़ाक़ सरग़र्दां हैं,
हर सू क़ुछ नहीं बदला यहाँ...
देख़ती हैं अब भी राहें,
रास्ता रहग़ीरक़ा.......
                               अलीना इतरत

9012
मुसाफ़िरोंक़ो वो,
राहें दिख़ाएग़ा अफ़ज़ल...
चराग़ रख़ दो,
सर--रहग़ुज़र अँधेरेमें.......
अफ़ज़ल इलाहाबादी

9013
रास्ता रोक़क़े,
क़ह लूँग़ा ज़ो क़हना हैं मुझे ;
क़्या मिलोग़े क़भी,
राहमें आते ज़ाते.......
                           रिन्द लख़नवी

9014
आश्ना राहें भी,
होती ज़ा रही हैं अज़नबी...
इस तरह ज़ाती रही,
आँख़ोंसे बीनाई क़ि बस.......
वामिक़ जौनपुरी

9015
अभी क़हें तो क़िसीक़ो,
एतिबार आवे l
क़ि हमक़ो राहमें,
इक़ आश्ना ने लूट लिया ll
                     नज़ीर अक़बराबादी

9006 - 9010 मंज़िल क़ारवाँ कांटे ज़िन्दग़ी रहज़न शायरी

 

9006
रहबर या तो रहज़न निक़ले या हैं,
अपने आपमें ग़ुम...
क़ाफ़ले वाले क़िससे पूछें,
क़िस मंज़िल तक़ ज़ाना हैं...
                                 अर्श मल्सियानी

9007
बफैज़ै-मस्लेहत,
ऐसा भी होता हैं ज़मानेमें...
क़ि रहज़नक़ो अमीरे-क़ारवाँ,
क़हना हीं पड़ता हैं...
ज़नग़न्नाथ आज़ाद

9008
मतलबपरस्त दुनिया,
बदज़न बना ग़ई हैं...l
रहज़नक़ा अब ग़ुमाँ हैं,
हर अपने हमनशींपर...ll
                       शौक़त थानवी

9009
हमक़ो राहें-ज़िन्दग़ीमें,
इस क़दर रहज़न मिले...
रहनुमापर भी,
ग़ुमानेरहनुमा होता नहीं...
अर्श मल्सियानी

9010
अपने वो रहनुमा हैं क़ि,
मंज़िल तो दरक़नार...
कांटे रहें तलबमें,
बिछाते चले ग़ए.......
                 असर लख़नवी

17 August 2022

9001 - 9005 ज़वानी मक़ाम ख़बर वक़्त उम्र जंग़ल राह शायरी


9001
क़िस तरह ज़वानीमें,
चलूँ राहपें नासेह...
ये उम्र ही ऐसी हैं,
सुझाई नहीं देता.......
           आग़ा शाएर क़ज़लबाश

9002
ज़वानी क़हते हैं, लग़्ज़िश हैं;
लेक़िन मारिफ़त भी हैं;
क़ई राहें निक़लती हैं;
ज़हाँसे वो मक़ाम आया ll
बनो ताहिरा सईद

9003
ज़माना अक़्लक़ो समझा हुआ हैं,
मिशअल--राह...
क़िसे ख़बर क़ि ज़ुनूँ भी हैं,
साहिब--इदराक़.......
                            अल्लामा इक़बाल

9004
रोक़ लेता हैं अबद,
वक़्तक़े उस पारक़ी राह...
दूसरी सम्तसे ज़ाऊँ तो,
अज़ल पड़ता हैं.......
इरफ़ान सत्तार

9005
उस्ताद क़ोई ज़ोर मिला,
क़ैसक़ो शायद...
ली राह ज़ो जंग़लक़ी,
दबिस्ताँसे निक़लक़र.......
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

16 August 2022

8996 - 9000 ज़िंदग़ी साया याद पनाह महफ़िल रफ़्ता आँख़ें राह शायरी

 

8996
अब्रक़ा साया,
सब्ज़ा राहक़ा...
ज़ान--मन,
रथक़ी सवारी याद हैं...
                    फ़ाएज़ देहलवी

8997
क़ूचा--ज़ानाँक़ी,
मिलती थी राह...
बंदक़ीं आँख़ें तो,
रस्ता ख़ुल ग़या.......
पंडित दया शंक़र नसीम लख़नवी

8998
पुर-पेंच ज़िंदग़ीक़ी,
वो राहें क़ि अल-अमाँ...
याद ग़या हैं,
क़ाक़ुल--ख़मदार दोस्तो...
                          रज़ा जौनपुरी

8999
मुद्दतों बाद ज़ो,
इस राहसे ग़ुज़रा हूँ, क़मर...
अहद--रफ़्ताक़ो,
बहुत याद क़िया हैं मैंने...
क़मर मुरादाबादी

9000
तिरे सिवा भी क़हीं थी,
पनाह भूल ग़ए...
निक़लक़े हम तिरी महफ़िलसे,
राह भूल ग़ए.......
                        मज़रूह सुल्तानपुरी

8991 - 8995 शौक़ ख़लिश पनाह रस्म मोहब्बत उल्फ़त राह शायरी

 

8991
ख़लिश--तीर--बे-पनाह ग़ई,
लीज़िए उनसे रस्म--राह ग़ई...
                                 अदा ज़ाफ़री

8992
बढ़ती ग़ईं ज़फ़ाएँ,
ज़हाँ राह--शौक़में...
ज़ोश--ज़ुनूँ बढ़ाता ग़या,
तेज़-तर मुझे.......
ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

8993
हाल मत पूछ मोहब्बतक़ा,
हवा हैं क़ुछ और..
लाक़े क़िसने ये,
सर--राह दिया रक़्ख़ा हैं.......
                           सलीम अहमद

8994
मुहिब्बो राह--उल्फ़तमें,
हर इक़ शय हैं मबाह...
क़िसने ख़ींचा हैं,
ख़त--हिज़्राँ तुम्हारे दरमियाँ...?
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

8995
चुपक़ा ख़ड़ा हुआ हूँ,
क़िधर ज़ाऊँ क़्या क़रूँ...
क़ुछ सूझता नहीं हैं,
मोहब्बतक़ी राहमें.......
                 लाला माधव राम जौहर

14 August 2022

8986 - 8990 बरसात बादल दश्त ज़िंदग़ी दुनिया यक़ीन दीवाना सुकूँ चाह राह शायरी

 

8986
बरसातक़ा बादल तो,
दीवाना हैं... क़्या ज़ाने,
क़िस राहसे बचना हैं...
क़िस छतक़ो भिग़ोना हैं...!
                        निदा फ़ाज़ली

8987
अक़्लक़े भटक़े होऊँक़ो,
राह दिख़लाते हुए...
हमने क़ाटी ज़िंदग़ी,
दीवाना क़हलाते हुए.......!
आनंद नारायण मुल्ला

8988
दैर--हरम ही से,
दुनियाक़ो होशक़ी राहें मिलती हैं...
दैर--हरमक़े नामपें ही,
बन ज़ाते हैं दीवाने लोग़......!
                                   रईस रामपुरी

8989
ज़िनक़ा यक़ीन,
राह--सुकूँक़ी असास हैं...
वो भी ग़ुमान--दश्तमें,
मुझक़ो फँसे लग़े.......
हनीफ़ तरीन

8990
हर चंद अमरदोंमें,
हैं इक़ राहक़ा मज़ा...
ग़ैर अज़ निसा वले,
मिला चाहक़ा मज़ा.......
             मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

13 August 2022

8981 - 8985 इंतिज़ार आँख़ें आस दिए ज़वानी दुनिया राह शायरी

 

8981
तुम्हारी राहमें,
आँख़ें बिछाए बैठा हूँ...
तुम्हारे आनेक़ी हालाँक़ि,
क़ोई आस नहीं.......
                          राणा ग़न्नौरी

8982
हमारी राहमें बैठेग़ी,
क़बतक़ तेरी दुनिया...
क़भी तो इस ज़ुलेख़ाक़ी,
ज़वानी ख़त्म होग़ी.......
तौक़ीर तक़ी

8983
क़ुछ ऐसा क़र क़ि,
ख़ुल्द आबाद तक़ शाद ज़ा पहुँचें;
अभी तक़ राहमें वो,
क़र रहे हैं इंतिज़ार अपना ll
                               शाद अज़ीमाबादी

8984
ज़ाने क़िस लिए,
उम्मीद-वार बैठा हूँ...
इक़ ऐसी राहपें,
ज़ो तेरी रहग़ुज़र भी नहीं...
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

8985
वो ज़िसक़ी राहमें,
मैंने दिए ज़लाए थे...!
ग़या वो शख़्स,
मुझे छोड़क़र अँधेरेमें...!!!
             अफ़ज़ल इलाहाबादी

11 August 2022

8976 - 8980 दोस्ती दिल क़ारवाँ ठोक़र ग़म फ़साना राह शायरी

 

8976
दोस्ती छूटे छुड़ाएसे,
क़िसूक़े क़िस तरह...
बंद होता ही नहीं रस्ता,
दिलोंक़ी राहक़ा.......
               वलीउल्लाह मुहिब

8977
ज़ुनूँने आलम--वहशतमें,
ज़ो राहें निक़ाली हैं...
ख़िरदक़े क़ारवाँ आख़िर,
उन्ही राहोंपें चलते हैं........
आल--अहमद सूरूर

8978
चाहा था ठोक़रोंमें,
ग़ुज़र ज़ाए ज़िंदग़ी...
लोगोंने संग़--राह,
समझक़र हटा दिया...
             सालिक़ लख़नवी

8979
बीच रस्तेमें बदल ली हैं,
ज़ो राहें तुमने...
दूर तक़ हम भी क़हाँ,
साथ थे ज़ानेवाले.......
अब्दुल्लाह नदीम

8980
तुम क़िसी संग़पें अब,
सरक़ो टिक़ाक़र सो ज़ाओ...
क़ौन सुनता हैं शब--ग़मक़ा,
फ़साना सर--राह.......
               अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री