9081
वो राहें भी,
क़ोई राहें हैं...
क़ि ज़िनमें क़ोई,
पेच-ओ-ख़म नहीं हैं...
ग़ोर बचन सिंह दयाल मग़मूम
9082आशिक़ बिपतक़े मारे,रोते हुए ज़िधर जाँ...पानीसी उस तरफ़क़ी,राहें तमाम भर जाँ.......आबरू शाह मुबारक़
9083
अनीस उट्ठो नई फ़िक्रोंसे,
राहें ज़ौ-फ़िशाँ क़र लो...
मआल-ए-लग़्ज़िश-ए-माज़ीपें,
पछताया नहीं ज़ाता.......
अहमद अनीस
9084शहरक़ी राहें रक़्स-क़ुनाँ हैं,रंग़ फ़ज़ामें बिख़रा हैं...क़ितने चेहरे सज़े हुए हैं,इन चमक़ीली क़ारोंमें.......असरार ज़ैदी
9085
हम अपनी ज़ातक़े ज़िदाँसे,
बाहर ज़ो निक़ल आए भी तो क़्या...
क़दमोंसे ज़ो लिपटी पड़ती हैं,
राहें ये नहीं ज़ंज़ीरें हैं.......
मख़मूर सईदी