9121
मुद्दत हुई इक़ शख़्सने,
दिल तोड़ दिया था...l
इस वास्ते अपनोंसे,
मोहब्बत नहीं क़रते...ll
साक़ी फ़ारुक़ी
9122शायद आ ज़ाए क़भी देख़ने,वो रश्क़-ए-मसीह...मैं क़िसी और से,इस वास्ते अच्छा न हुआ...अनवर ताबाँ
9123
मुँह आपक़ो,
दिख़ा नहीं सक़ता हैं शर्मसे...
इस वास्ते हैं,
पीठ इधर आफ़्ताबक़ी.......
इमाम बख़्श नासिख़
9124आमद-ओ-शुद कूचेमें,हम उसक़े क़्यूँ न क़रें मानिंद-ए-नफ़स ;ज़िंदग़ी अपनी ज़ानते हैं,इस वास्ते आते ज़ाते हैं llशाह नसीर
9125
ज़ेर-ए-ख़ंज़र,
मैं तड़पता हूँ फ़क़त इस वास्ते l
ख़ून मेरा उड़क़े,
दामन-ग़ीर हो ज़ल्लादक़ा ll
ज़लील मानिक़पूरी