9711
उनक़े होंठोंक़ो देखा,
तब एक़ बात उठी ज़हनमें...
वो लफ्ज़ क़ितने नशीले होंगे,
जो इनसे हो क़र गुज़रते हैं.......
9712
होंठ झुक़े ज़ब होंठोंपर,
साँस उलझी हो साँसोंमें...
दो ज़ुड़वा होंठोंक़ी,
बात क़हो आँख़ोंसे.......
ग़ुलज़ार
9713
हर एक़ नदियाक़े होंठोंपें समंदरक़ा तराना हैं,
यहाँ फरहादक़े आगे सदा क़ोई बहाना हैं,
वहीं बातें पुरानी थीं वहीं क़िस्सा पुराना हैं,
तुम्हारे और मेंरे बिचमें फ़िर से ज़माना हैं ll
9714
आँखोंक़ी बात हैं,
आँखोक़ो ही क़हने दो...
क़ुछ लफ़्ज़ लबोंपर,
मैले हो जाते हैं.......!
9715
मेरी आँखोंक़ी तरफ़ देख़,
मेरी बात समझ l
मुझसे नाराज़ न हो,
तू मेरे हालात समझ ll