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दर्द-ए-दिल,
कितना पसंद आया
उसे...
मैने जब आह
की,
उसने वाह की.......
आसी ग़ाज़ीपुरी
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ये दिलका दर्द तो,
उम्रोंका
रोग हैं प्यारे;
सो जाए भी
तो,
पहर दोपहरको जाता हैं !
अहमद फ़राज़
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दर्द कागज़ पर
मेरा, बिकता रहा,
मैं बैचैन था, रातभर
लिखता रहा;
छू रहे थे
सब, बुलंदियाँ आसमानकी,
मैं सितारोंके बीच, चाँदकी
तरह छिपता रहा;
दरख़्त होता तो,
कबका टूट गया
होता,
मैं था नाज़ुक
डाली, जो सबके
आगे झुकता रहा;
बदले यहाँ लोगोंने
रंग, अपने-अपने
ढंगसे,
रंग मेरा भी
निखरा पर, मैं
मेहँदीकी तरह पीसता
रहा;
ज़िनको जल्दी थी, वो
बढ़ चले मंज़िलकी
ओर,
मैं समन्दरसे, राज गहराईके
सीखता रहा ll
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जुदाईयोंके
ज़ख़्म,
दर्द-ए-ज़िंदगीने
भर दिए...
तुझे भी नींद
आ गई,
मुझे भी सब्र
आ गया....!
नासिर काज़मी
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दर्दको रहने भी
दे.
दिलमें दवा हो
जाएगी...
मौत आएगी तो,
ऐ हमदम शिफ़ा
हो जाएगी...!
हकीम मोहम्मद अजमल
ख़ाँ
शैदा