14 November 2019

5031 - 5035 वक्त कश्मकश होंठ रिश्ता गलियाँ दाग बात शायरी


5031
वक्त-वक्त की बात है...
कल जो रंग थे;
आज वो दाग हो गये.......!

5032
इन होंठों की भी ना जाने,
क्या मजबूरी होती है...
वही बात छिपाते है,
जो कहनी ज़रूरी होती है...!

5033
इस कश्मकशमें,
सारा दिन गुज़र जाता है की;
उससे बात करू,
या उसकी बात करू.......!

5034
आखिर क्यों...
रिश्तोकी गलियाँ,
इतनी तंग हैं...
शुरुवात कौन करे,
यहीं सोच कर बात बंद है...

5035
गुरुर किस बातका साहब ?
आज मिट्टीके ऊपर,
तो कल मिट्टीके नीचे...

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