14 July 2018

3016 - 3020 दिल मुहोब्बत तब्दील अदालत मयखाने नशा कागज़ कलम वक्त झूठ नींद किमत ऑंसू इंतजार आखें उम्र नज़र ग़फ़लत शायरी


3016
कर दो तब्दील,
अदालतोंको मयखानोंमें साहब;
सुना हैं नशेमें कोई,
झूठ नहीं बोलता.......!

3017
कागज़ कलम मैं,
तकियेके पास रखता हूँ;
दिनमें वक्त नहीं मिलता,
मैं उन्हें नींदमें लिखता हूँ...

3018
मैने उससे पूछा,
किमत क्य़ा हैं मुहोब्बतकी ?
वो भी हसकर बोली,
ऑंसू भरी आखें और उम्रभरका इंतजार...

3019
हजार टुकडे कर दिये,
उसने मेरे दिलके;
फिर वो खुद रो पडी,
हर टुकडोमें अपना नाम देखकर...

3020
रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर,
अपनी ही नज़रमें हो गए,
वाह-री-ग़फ़लत,
तुझे अपना समझ बैठे थे हम...

13 July 2018

3011 - 3015 दिल आवाज जिन्दगी कदर यार आख़ होठ वक़्त चाहत हसीन गुमसूम बचैन खामोश होश जाम वफा बाजार शायरी


3011
काश ! एक बार...
आवाजतो दी होती हमें,
हम तो वहांसे भी लोट आते,
जहांसे कोई नहीं आता.......।।

3012
इस कदर हम यारको मनाने निकले,
उसकी चाहतके हम दीवाने निकले;
जब भी उसे दिलका हाल बताना चाहा,
तो उसके होठोंसे वक़्त ना होनेके बहाने निकले...

3013
नहीं हैं हम इतने हसीन की,
हर किसीके दिलमें बस जाए;
पर जिसके साथ चल पड़े,
जिन्दगी उसीके नाम कर देते...!

3014
रात गुमसूम हैं, मगर बचैन खामोश नहीं,
कैसे कह दूँ आज फिर होश नहीं,
ऐसा डूबा तेरी आख़ोंकी गहराईमें ...
हाथमें जाम हैं, मगर पीनेका होश नहीं...

3015
चलो चलते हैं,
बेवफाईके बाजारमें...
शायद कोई जोहरी,
हमारी वफाको भी मिले.......!

3006 - 3010 दिल मोहब्बत प्यार कदम मैखाने आवाज़ शराब दीदार ज़रूरत समंदर लहरे किनारा चाँद याद पागल चाहत उलझन मंज़िल आदत शायरी


3006
अभी कदम ही रखा था...
हमने मैखानेमें, की आवाज़ आयी,
चला जा वापस,
तुझे शराबकी नहीं...
किसीके दीदारकी ज़रूरत हैं...!

3007
समंदरके लिए वो लहरे क्या,
जिसका कोई किनारा ना हो,
तारोके लिए वो रात क्या जिसमे चाँद ना हो,
हमारे लिए वो दिन ही क्या,
जिसमें आप की याद ना हो.......!

3008
फिर कोई दुःख मिलेगा,
तैयार रह,  दिल !
कुछ लोग पेश रहे हैं...
बहुत प्यारसे.......!

3009
वो कभी गलतफहमीमें रहते हैं,
कभी उलझनमें रहते हैं;
इतनी जगह दी हैं उनको दिलमें,
वो वहाँ क्यों नहीं रहते हैं.......?

3010
किसीकी चाहतमें,
इतने पागल ना हो;
हो सकता हैं वो,
तुम्हारी मंज़िल ना हो;
उसकी मुस्कुराहटको,
मोहब्बत ना समझो;
कहीं ये मुस्कुराना,
उसकी आदत ना हो...!

11 July 2018

3001 - 3005 आँख पलक कफन दफन खामोश चहेरे खयाल नजर सवाल जवाब लफ्ज अलफाज कागज किताब बेमान कहानी शायरी


3001
अच्छा हैं आँखोंपर,
पलकोंका कफन हैं...
वरना तो इन आँखोंमें,
बहुत कुछ दफन हैं.......

3002
हम पूछ तो लेंगे,
की वो खामोश क्यूँ हैं...
पहेले मेरे दिलको दिलकी बात तो बतादे वो...
खामोशीसेही सही.......!

3003
मसखरेसे पूछा गया सवाल की,
" चहेरेपें नकाब क्यो लगाते हो... "
क्या खूब जवाब था उसका:
" लगाते तो सब हैं...
बस मेरा नजर आता हैं.......। "

3004
बिन बुलाये जाता हैं,
सवाल नहीं करता...
ये खयाल भी किसीका,
खयाल नहीं करता.......

3005
"लफ्ज, अलफाज, कागज, किताब...
सब बेमानी हैं,
तुम कहते रहो हम सुनते रहें,
बस इतनीसी कहानी हैं.......

10 July 2018

2996 - 3000 दिल मोहब्बत आँख मैखाने दुनियाँ लफ्ज उस्ताद जवाब सवाल गुलाब ज़र्रा जाहिल शायरी


2996
मैं थोड़ी देर तक बैठा रहा,
उसकी आँखोंके मैखानेमें;
दुनियाँ मुझे आज तक...
नशेका आदि समझती हैं

2997
लफ्ज़ोंके हेर फेरका,
धन्दा भी ख़ूब हैं;
जाहिल हमारे शहरके,
उस्ताद हो गऐ...!

2998
मोहब्बत तो,
जीना सिखाती हैं, जनाब...
और ना मिले तो,
पीना सिखाती हैं.......!

2999
दिल तेरे.......
किस-किस सवालका जवाब दें...
बेहतर यही होगा,
तुझे अब सीनेसे निकाल दें.......

3000
कभी तो मिल तू मुझे...
किसी गुलाब सा,
मैं भँवरेसी तुझे,
ज़र्रा ज़र्रा ढूंढती हूँ...

9 July 2018

2991 - 2995 खुशियाँ वक़्त उधार दफ़न सबूत यक़ीन दूरियाँ कमजोरी नादान खौफ सूरज तन्हा शायरी


2991
हम तो खुशियाँ उधार देनेका,
कारोबार करते हैं;
कोई वक़्तपें लौटाता नहीं हैं,
इसलिए घाटेमें हैं !!!

2992
यहाँ जीना हैं...
तो नींदमें भी पैर हिलाते रहिये...
वर्ना दफ़न कर देगा ये शहर,
मुर्दा समझकर.......

2993
सबूतोंकी ज़रूरत पड़ रही हैं,
यक़ीनन दूरियाँ अब बढ़ रही हैं।

2994
मेरी नरमीको मेरी कमजोरी समझना...
नादान,
सर झुकाके चलता हूँ,
तो सिर्फ ऊपर वालेके खौफसे...

2995
चढते सूरजके,
पूजारी तो लाखों हैं,  दोस्त;
डूबते वक़्तमें हमने,
सूरजको भी तन्हा देखा हैं...!

8 July 2018

2986 - 2990 ख़ुशी पहचान चहरे शोहरत फुर्सत नजर घायल चाहत सलामत किताब सपने सजा शायरी


2986
तेरी पहचान भी,
खो ना जाये कहीं;
इतने चहरे ना बदल,
थोड़ीसी शोहरतके लिये...!

2987
कभी जो फुर्सत मिले,
तो मुड़कर देख लेना मुझे एक दफ़ा...!
तेरी नजरोंसे घायल होनेकी चाहत,
मुझे आज भी हैं...!

2988
हवा उससे कहना,
सलामत हैं अभी;
तेरे फूलोंको,
किताबोमें छिपाने वाला.......!

2989
टूटे हुए सपनो और,
छुटे हुए अपनोंने मार दिया वरना;
ख़ुशी खुद हमसे,
मुस्कुराना सिखने आया करती थी !

2990
इससे ज्यादा और,
क्या सजा दे हम अपने आपको,
इतना काफी नहीं हैं कि,
तेरे बगैर रहना सीख रहे हैं...!!!

7 July 2018

2981 - 2985 दिल प्यार मोहब्बत साँस तन्हाई खुशबू महक याद जुबान आँखें आसमान शायरी


2981
आखरी साँसके,
टूटनेसे पहेले भी...
तुझसे पानीकी जगह,
प्यार ही माँगेंगे.......!

2982
होते नहीं तबादले,
मोहब्बत करने वालोके;
वो आधी रातको भी,
तन्हाईमें तैनात मिला करते हैं...!

2983
खुशबू तेरी प्यारकी मुझे महका जाती हैं,
तेरी हर बात मुझे बहका जाती हैं,
साँस तो बहुत देर लेती हैं आनेमें,
हर साँससे पहले तेरी याद जाती हैं

2984
मैं क्या करू,
ये रिवायतें मुझे नहीं आती;
बात जो दिलमें आती हैं,
जुबान कह जाती हैं.......!

2985
आँखें थक गई हैं,
आसमानको तकते तकते;
वो तारा नहीं टूटता,
जिसे देखकर तुम्हें मांग लूँ।

6 July 2018

2976 - 2980 दिल मोहब्बत इश्क़ चाहत फिराक नक़ाब इनकार तस्वीर नजर नाम बात बोझ शायरी


2976
घरसे बाहर वो नक़ाबमें निकली,
सारी गली उनकी फिराकमें निकली;
इनकार करते थे वो हमारी मोहब्बतसे,
और हमारी ही तस्वीर उनकी किताबसे निकली...

2977
'नजर' 'नमाज' 'नजरिया'...
सब कुछ बदल गया,
एक रोज इश्क़ हुआ और...
मेरा खुदा बदल गया.......!

2978
सुनो...
दिल नहीं चाहिए तुम्हारा,
उसमे जो चाहत हैं ना...
वो मेरे नाम कर दो !!!

2979
मोहब्बत,
बोझ तो नहीं होती...
फिर भी इंसानको,
झुकना सिखा देती हैं !

2980
हम दोनों ही डरते थे,
इक दूजेसे बात करनेके लिए...
मैं, मोहब्बत हो गयी थी इसलिए और,
वो, मोहब्बत हो जाये इसलिए...!

2971 - 2975 दिल जिंदगी फरेब दर्द हार जीत जशन गम किताब मुश्किल चिराग खंजर शायरी


2971
जिंदगी जीता हूँ खुली किताबकी तरह,
ना कोई फरेब ना कोई लालच...
मगर मैं हर "बाजी" खेलता हूँ,
"बिना देखे" क्योंकि,
ना मुझे हारनेका गम,
ना जीतनेका जशन.......

2972
दिलके दर्द छुपाना बड़ा मुश्किल हैं,
टूटकर फिर मुस्कुराना बड़ा मुश्किल हैं;
किसी अपनेके साथ दूरतक जाओ फिर देखो,
अकेले लौटकर आना कितना मुश्किल हैं

2973
जलाए जो चिराग,
तो अंधेरे बुरा मान बैठे;
छोटीसी जिंदगी हैंसाहब...
किस किसको मनाएंगे हम...

2974
माना कि औरोंके मुकाबले,
कुछ ज्यादा पाया नहीं मैने;
पर खुश हूँ कि स्वयंको गिराकर,
कुछ उठाया नहीं मैंने.......!

2975
अपनी पीठसे निकले खंजरोंको,
गिना जब मैने...
ठीक उतने ही थे जितनोंको,
गले लगाया था मैने.......