3016
कर दो तब्दील,
अदालतोंको मयखानोंमें साहब;
सुना हैं नशेमें कोई,
झूठ
नहीं बोलता.......!
3017
कागज़ कलम मैं,
तकियेके पास
रखता हूँ;
दिनमें वक्त
नहीं मिलता,
मैं
उन्हें नींदमें
लिखता हूँ...
3018
मैने उससे पूछा,
किमत क्य़ा हैं मुहोब्बतकी ?
वो भी हसकर
बोली,
ऑंसू भरी आखें
और उम्रभरका
इंतजार...
3019
हजार टुकडे कर दिये,
उसने मेरे दिलके;
फिर वो खुद
रो पडी,
हर
टुकडोमें अपना
नाम देखकर...
3020
रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर,
अपनी
ही नज़रमें
हो गए,
वाह-री-ग़फ़लत,
तुझे अपना समझ
बैठे थे हम...