13 July 2018

3011 - 3015 दिल आवाज जिन्दगी कदर यार आख़ होठ वक़्त चाहत हसीन गुमसूम बचैन खामोश होश जाम वफा बाजार शायरी


3011
काश ! एक बार...
आवाजतो दी होती हमें,
हम तो वहांसे भी लोट आते,
जहांसे कोई नहीं आता.......।।

3012
इस कदर हम यारको मनाने निकले,
उसकी चाहतके हम दीवाने निकले;
जब भी उसे दिलका हाल बताना चाहा,
तो उसके होठोंसे वक़्त ना होनेके बहाने निकले...

3013
नहीं हैं हम इतने हसीन की,
हर किसीके दिलमें बस जाए;
पर जिसके साथ चल पड़े,
जिन्दगी उसीके नाम कर देते...!

3014
रात गुमसूम हैं, मगर बचैन खामोश नहीं,
कैसे कह दूँ आज फिर होश नहीं,
ऐसा डूबा तेरी आख़ोंकी गहराईमें ...
हाथमें जाम हैं, मगर पीनेका होश नहीं...

3015
चलो चलते हैं,
बेवफाईके बाजारमें...
शायद कोई जोहरी,
हमारी वफाको भी मिले.......!

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