9 July 2018

2991 - 2995 खुशियाँ वक़्त उधार दफ़न सबूत यक़ीन दूरियाँ कमजोरी नादान खौफ सूरज तन्हा शायरी


2991
हम तो खुशियाँ उधार देनेका,
कारोबार करते हैं;
कोई वक़्तपें लौटाता नहीं हैं,
इसलिए घाटेमें हैं !!!

2992
यहाँ जीना हैं...
तो नींदमें भी पैर हिलाते रहिये...
वर्ना दफ़न कर देगा ये शहर,
मुर्दा समझकर.......

2993
सबूतोंकी ज़रूरत पड़ रही हैं,
यक़ीनन दूरियाँ अब बढ़ रही हैं।

2994
मेरी नरमीको मेरी कमजोरी समझना...
नादान,
सर झुकाके चलता हूँ,
तो सिर्फ ऊपर वालेके खौफसे...

2995
चढते सूरजके,
पूजारी तो लाखों हैं,  दोस्त;
डूबते वक़्तमें हमने,
सूरजको भी तन्हा देखा हैं...!

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