4 July 2018

2966 - 2970 इश्क़ ख्वाब इबादत इलज़ाम दस्तूर उम्र आँसु खामोश बात ख्वाब इबादत इश्क़ कबूल शायरी


2966
हँसकर कबूल क्या करलीं,
सजाएँ मैने...
अपनोंने दस्तूर ही बना लिया;
हर इलज़ाम मुझपर लगानेका.......!

2967
नसीबने पूछा,
"बोल क्या चाहिए ?"...
'ख़ुशी' क्या मांग ली,
"खामोश" हो गया......

2968
उम्रभरकी बात,
बिगड़ी, एक ज़रासी बातमें...
एक लम्हा, ज़िंदगी भरकी,
कमाई उलझा गया.......!

2969
"वो इश्क़, वो ख्वाब, वो इबादत,
जाने कहाँ गुम हो गए...
कल तक 'हम' थे;
आज 'मैंऔर 'तुम' हो गए.......!"

2970
अच्छा हैं.......
आँसुओंकी कीमत नहीं लगती,
वरना कुछ तकिये,
करोड़ोमें बिकते.......!

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