6 July 2018

2976 - 2980 दिल मोहब्बत इश्क़ चाहत फिराक नक़ाब इनकार तस्वीर नजर नाम बात बोझ शायरी


2976
घरसे बाहर वो नक़ाबमें निकली,
सारी गली उनकी फिराकमें निकली;
इनकार करते थे वो हमारी मोहब्बतसे,
और हमारी ही तस्वीर उनकी किताबसे निकली...

2977
'नजर' 'नमाज' 'नजरिया'...
सब कुछ बदल गया,
एक रोज इश्क़ हुआ और...
मेरा खुदा बदल गया.......!

2978
सुनो...
दिल नहीं चाहिए तुम्हारा,
उसमे जो चाहत हैं ना...
वो मेरे नाम कर दो !!!

2979
मोहब्बत,
बोझ तो नहीं होती...
फिर भी इंसानको,
झुकना सिखा देती हैं !

2980
हम दोनों ही डरते थे,
इक दूजेसे बात करनेके लिए...
मैं, मोहब्बत हो गयी थी इसलिए और,
वो, मोहब्बत हो जाये इसलिए...!

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