6 July 2018

2971 - 2975 दिल जिंदगी फरेब दर्द हार जीत जशन गम किताब मुश्किल चिराग खंजर शायरी


2971
जिंदगी जीता हूँ खुली किताबकी तरह,
ना कोई फरेब ना कोई लालच...
मगर मैं हर "बाजी" खेलता हूँ,
"बिना देखे" क्योंकि,
ना मुझे हारनेका गम,
ना जीतनेका जशन.......

2972
दिलके दर्द छुपाना बड़ा मुश्किल हैं,
टूटकर फिर मुस्कुराना बड़ा मुश्किल हैं;
किसी अपनेके साथ दूरतक जाओ फिर देखो,
अकेले लौटकर आना कितना मुश्किल हैं

2973
जलाए जो चिराग,
तो अंधेरे बुरा मान बैठे;
छोटीसी जिंदगी हैंसाहब...
किस किसको मनाएंगे हम...

2974
माना कि औरोंके मुकाबले,
कुछ ज्यादा पाया नहीं मैने;
पर खुश हूँ कि स्वयंको गिराकर,
कुछ उठाया नहीं मैंने.......!

2975
अपनी पीठसे निकले खंजरोंको,
गिना जब मैने...
ठीक उतने ही थे जितनोंको,
गले लगाया था मैने.......

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