3101
अजीब शर्त रख
दी,
दिल-दारने मिलनेकी,
सूखे पत्तोंपर चल
कर आना,
और
आवाज़ भी न
हो.......
3102
बडा एहसान हैं,
तेरी
नफरतोंका मुझपें;
ऐसी ठोकर लगी
की,
चलना सिखा
दिया।
3103
छोड दो ठोकरमें मुझको यारो,
साथ मेरे रहकर
क्या पाओगे;
अगर हो गई
आपको भी मोहब्बत
कभी,
मेरी तरह तुम
भी पछताओगे...
3104
किस्मतकी बारीश,
कुछ ऐसी होती
रहीं मुझपर
की...
ख्वाहिशें सुखती
रहीं और,
पलके
भिगती रहीं।
3105
कहीं होकर भी
नहीं हूँ,
कहीं
न होकर भी
हूँ...
बड़ी कशमकशमें हूँ
कि,
कहाँ हूँ
और कहाँ नहीं
हूँ !!!