4201
वक्त और हालातने,
ऐसा बना
दियाहैं...
किसीके ल़फ्ज
चुभते हैं,
तो
किसीकी खामोशी...
4202
'खामोशी' बहुत अच्छी है,हैं
कई रिश्तोंकी आबरू...,
ढक लेती हैं...!
4203
खामोशीका भी
अपना,
रुतबा होता
हैं...
बस समझने वाले,
कम
होते हैं.......!
4204
"अपने
खिलाफ बाते,
खामोशीसे सुनता
रहता हूँ;
जवाब देनेका
ज़िम्मा,
मैंने वक्तको
दे रखा हैं..."
4205
हम तो सोचते
थे कि,
लफ्ज़
ही चोट करते
हैं...
मगर कुछ खामोशियोंके ज़ख्म तो,
और भी गहरे
निकले.......!