5461
कुछ रूठे हुए लम्हें,
कुछ टूटे हुए रिश्ते...
हर कदमपर काँच बनकर,
जख्म देते हैं.......
5462
वहमसे भी अक्सर,
खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते;
कसूर हर बार,
गल्तियोंका नही होता...
5463
रिश्तोंके इस जोड़-तोड़में,
हम भी ऐसे टूटे हैं...
कभी रूठे थे हमसे रिश्ते,
अब हम भी रूठे रूठे हैं...
5464
थकानसी होने लगी हैं,
रोज-रोज कोई ना कोई,
नाराज हो ही जाता हैं...
5465
रिश्तोंके दलदलसे,
हम कैसे निकलेंगे...
जब हर साज़िशके पीछे,
अपने निकलेंगे.......