5806
तुटे कांचके तुकडोसे,
तज कसे हैं
जालीम दुनियाने,
चंद लम्हे और टूटे
सपने,
इन्ही खीलोनोसे अपनेको बेहलाया
हैं हमने ll
5807
टूटे हुए सपनो
और रूठे हुए
अपनोंने,
उदास कर दिया...
वरना लोग हमसे
मुस्करानेका,
राज पुछा करते
थे...!
5808
सपनोमें
उन्हे हम,
हररोज ढुढते रहें...
वो हैं कि
नींद हमारी,
उडाके चले गये.......
5809
सपनोंकी
बर्फ़पर,
हक़ीक़तकी
गर्मी पड़ती हैं l
तो बहुतसे इरादे,
पानी-पानी हो
जातें हैं ll
5810
आँखें तो मेरी
नीलाम हो गई,
तुम्हारा
रास्ता तकते तकते...
बिना सोचेसमझे ही मैं
हद पार कर
गई,
तुम्हारे
ही सपने बुनते
बुनते.......
भाग्यश्री