5931
इस शहरमें हम जैसा
सौदागर,
कहाँ मिलेगा यारो.......
हम ग़म भी खरीद लेते
हैं,
किसीकी खुशी के
लिए...!
5932
निकल आते हैं आँसू
हँसते हँसते;
ये किस ग़मकी कशक
हैं हर खुशीमें...!
5933
चाहा था मुक़म्मल
हो,
मेरे ग़मकी कहानी...
मैं लिख न सका कुछ
भी,
तेरे नामसे आगे.......
5934
इलाही, उनके हिस्सेका ग़म भी,
मुझको अता कर दे l
के उनकी मासूम आँखोंमें,
नमी देखी नहीं जाती ll
5935
तेरे हर ग़मको अपनी
रूहमें उतार लूँ,
ज़िन्दगी अपनी तेरी
चाहतमें संवार लूँ,
मुलाक़ात हो तुझसे
कुछ इस तरह मेरी,
सारी उम्र बस एक
मुलाक़ातमें गुज़ार लूँ l