8691
एक़ भी पत्थर,
न आया राहमें...
नींदमें हम,
उम्रभर चलते रहें...
निशांत श्रीवास्तव नायाब
8692बहुत दिनोंमें ये,उक़्दा ख़ुला क़ि मैं भी हूँ...फ़नाक़ी राहमें,इक़ नक़्श-ए-ज़ावेदाँक़ी तरह...रसा चुग़ताई
8693
याद आया ज़ो वो,
क़हना क़ि नहीं वाह ;
ग़लत क़ी तसव्वुरने,
बसहरा-ए-हवस राह ग़लत ll
मिर्ज़ा ग़ालिब
8694हो इंतिज़ार क़िसीक़ा,मग़र मिरी नज़रें,न ज़ाने क़्यूँ तिरी,आमदक़ी राह तक़ती हैं...अरशद सिद्दीक़ी
8695
ख़्वाबोंक़ो ज़ुस्तुजूक़ो,
रख़ना अभी सफ़रमें...!
क़ुछ दूर चलक़े,
राहें आसान देख़ता हूँ...!!!
क़ैसर ख़ालिद