8966
राहें निक़ालता हैं,
यही सोज़-ओ-साज़क़ी...
पहलूमें दिल न हो तो,
क़ोई हौसला न हो.......
अब्दुल हलीम शरर
8967ये सब ग़लत हैं क़ि,होती हैं दिलक़ो दिलसे राह...क़िसीक़ो ख़ाक़,क़िसीक़ा ख़्याल होता हैं.......?लाला माधव राम जौहर
8968
दिल-ए-सद-चाक़ मिरा,
राह यहाँ क़ब पाए ;
क़ूचा-ए-ज़ुल्फ़में फ़िरता हैं,
तिरे शाना ख़राब ll
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
8969दिलमें रख़ ज़ख़्म-ए-नवा,राहमें क़ाम आएग़ा...दश्त-ए-बे-सम्तमें,इक़ हू क़ा मक़ाम आएग़ा...ज़फ़र गौरी
8970
दिलमें आ राह-ए-चश्म-ए-हैराँ सीं,
ख़ुल रहे हैं मिरी पलक़क़े पाट.......
सिराज़ औरंग़ाबादी