9 October 2017

1821 - 1825 दिल मुहब्बत दुनियाँ ज़ख्म शीशे कमाल हासिल धोखा बयाँ महफ़िल बेहिसाब शायरी


1821
मुझे भी शीशे जैसा
कमाल हासिल हैं;
अगर मैं टूटता हूँ,
तो बेहिसाब होता हूँ...

1822
कहाँ कोई ऐसा मिला, जिसपर हम दुनियाँ लुटा देते,
हर एकने धोखा दिया, किस-किसको भुला देते,
अपने दिलका ज़ख्म, दिलमें ही दबाये रखा,
बयाँ करते, तो महफ़िलको रुला देते...

1823
बेवफाओंकी इस दुनियाँमें
संभलकर चलना मेरे दोस्तों;
यहाँ बर्बाद करनेके लिए,
मुहब्बतका सहारा लेते हैं लोग...

1824
बड़ी मुद्दतसे चाहा हैं तुझे !
बड़ी दुआओंसे पाया हैं तुझे !
तुझे भुलानेकी सोचूं भी तो कैसे ! 
किस्मतकी लकीरोंसे चुराया हैं तुझे !!!

1825
हम तो वो हैं जो तेरी,
बातें सुनकर तेरे हो गए थे,
वो और होंगे जिन्हे,
मोहब्बत चेहरेसे होती हो...

7 October 2017

1816 - 1820 मोहब्बत जिन्दगी बेवजह मुस्कुरा मकसद साथ खामोश चेहरे पहरे आँख ज़ख़्म गहरे चाहत रूठ बारिश शायरी


1816
मुस्कुरानेके मकसद न ढूँढ,
वर्ना जिन्दगी यूँ ही कट जाएगी,
कभी बेवजह भी मुस्कुराके देख,
तेरे साथ साथ जिन्दगीभी मुस्कुरायेगी !

1817
खामोश चेहरेपर हज़ारों पहरे होते हैं,
हँसती आँखोंमें भी ज़ख़्म गहरे होते हैं,
जिनसे अक्सर रूठ जाते हैं हम,
असलमें उनसे ही रिश्ते गहरे होते हैं...

1818
मोहब्बत तो वो बारिश हैं,
जिसे छूनेकी चाहतमें;
हथेलियाँ तो गीली हो जाती हैं,
पर हाथ खालीही रह जाते हैं.......

1819
हमें अक्सर उनकी जरुरत होती हैं,
जिनके लिए हम जरुरी नहीं होते...

1820
कारवाँ-ए-ज़िन्दगी...
हसरतोंके सिवा,
कुछभी नहीं...
ये किया नहीं,
वो हुआ नहीं,
ये मिला नहीं,
वो रहा नहीं...

6 October 2017

1811 - 1815 मोहब्बत तन्हाई परछाई लब चाह पलक कदर फ़रियाद चाँद चुपके याद उम्मीद अजनबी रख्खुं शायरी


1811
इस कदर हर तरफ तन्हाई हैं,
उजालोमें अंधेरोंकी परछाई हैं,
क्या हुआ जो गिर गये पलकोंसे आँसू,
शायद याद उनकी चुपकेसे चली आई हैं...

1812
न चाहकर भी मेरे लबपर,
फ़रियाद आ जाती हैं,
ऐ चाँद, सामने न आ,
किसीकी याद आ जाती हैं !

1813
चलो इकबार फिरसे,
अजनबी बन जाये हम दोनों;
न मै तुमसे कोई उम्मीद रख्खुं,
ना तुम...

1814
तेरी मोहब्बतको कभी खेल नहीं समजा
वरना खेल तो इतने खेले हैं की कभी
हारे नहीं .....

1815
लौट आके मिलते हैं,
फिरसे अजनबीकी तरह,
तुम हमारा नाम पूछलो और...
हम तुम्हारा हाल पूछते हैं.......!

5 October 2017

1806 - 1810 दिल दुनियाँ मोहब्बत पढाई बेईमान शराफ़त महफूज किस्सा जन्म कहानी यक़ीन खत्म लापता दीदार शायरी


1806
वो तब भी थी, अब भी हैं,
और हमेशा रहेगी...
"ये मोहब्बत हैं...
पढाई नहीं जो पूरी हो जाऐ."

1807
किसी औरके दीदारके लिए,
उठती नहीं ये आँखे,
बेईमान आँखोंमें थोड़ीसी,
शराफ़त आज भी हैं ...

1808
कहते हैं दिलसे ज्यादा महफूज जगह,
नहीं दुनियाँमें और कोई.......
फिरभी ना जाने क्यों सबसे ज्यादा,
यहींसे लोग लापता होते हैं...!!!

1809
अगर तुम्हे पा लेते तो...
किस्सा इसी जन्ममें खत्म हो जाता;
तुम्हे खोया हैं...
तो यक़ीनन कहानी लम्बी चलेगी.......

1810
लफ्ज़ोसे होता नहीं,
इज़हार हमसे प्यारका,
बस मेरी आँखोंमें,
देखकर… खुदको पहचान लो !

3 October 2017

1801 - 1805 दिल प्यार जज्बात मजाक वजह नशा दर्द सच्चे प्यार सज़ा शायरी


1801
कभी किसीके जज्बातोंका,
मजाक मत बनाना दोस्तो...
ना जाने कौनसा दर्द लेकर,
"कोई जी रहा होगा..."

1802
कोई कहता हैं, प्यार नशा बन जाता हैं!
कोई कहता हैं, प्यार सज़ा बन जाता हैं!
पर प्यार करो अगर सच्चे दिलसे,
तो वो प्यार ही जीनेकी वजह बन जाता हैं...!

1803
वो शायद मतलबसे मिलते हैं...
मुझे तो...
मिलनेसे मतलब हैं।

1804
बग़ैर जिसके एक पलभी,
गुज़ारा नहीं होता l
सितम देखिये,
दिलमें रहेकर भी,
हीं शख़्स
हमारा नहीं होता... l l

1805
एक फ़क़ीर हूँ मैं अपना अंदाज...
औरोंसे जुदा रखता हूँ
लोग मंदिर मस्जिदोंमें जाते हैं,
मैं अपने दिलमें खुदा रखता हूँ...!

2 October 2017

1796 - 1800 ज़िंदगी बंधन विश्वास आँसू जज़्बात किस्मत इतेफ़ाक़ रिश्ते ख्वाब वादा शायरी


1796
सिर्फ़ बंधनको विश्वास नहीं कहते,
हर आँसूको जज़्बात नहीं कहते,
किस्मतसे मिलते हैं रिश्ते ज़िंदगीमें,
इसलिए रिश्तोंको कभी इतेफ़ाक़ नहीं कहते l

1797
वो जाते हुए बोले हमसे,
क़े अब हम सिर्फ ख्वाबोमें ही मिलने आयेंगे ....
हमने कहां तुम वादा निभाना अपना,
हम भी हमेशाक़े लिए सो जायेंगे...

1798
मुझपे हँसनेकी
ज़मानेको सज़ा दी जाए,
मैं बहुत खुश हूँ
ये अफ़वाह उड़ा दी जाए !!!

1799
होता अगर मुमकिन,
तुझे साँस बनाकर रखते सीनेमें,
तू रुक जाये तो मैं नहीं,
मैं मर जाऊँ तो तू नहीं...

1800
बिकनेवाले और भी हैं,
जाओ जाकर खरीद लो,
हम किंमतसे नहीं,
किस्मतसे मिला करते हैं !

1 October 2017

1791 - 1795 मोहब्बत नजर अंजान बेगाने दिवाने जुस्तजू बगैर वादा चिराग दिल याद अजीब शायरी


1791
इतनी तो नजर अंजान न थी,
ऐसे न कभी बेगाने थे;
मुह फेरके जाते हैं हमसे,
जो पहले हमारे दिवाने थे ...

1792
सब कुछ हैं पास लेकिन कुछ भी नहीं रहा,
उसकी ही जुस्तजू थी वो ही नहीं रहा,
कहता था इक पल न रहूँगा तेरे बगैर...
हम दोनों रह गए, वो वादा नहीं रहा !

1793
शाम होते ही,
चिरागोंको बुझा देता हुँ ...
मेरा दिल ही काफी हैं,
तेरी यादमें जलनेके लिए ...

1794
अजीब था उनका अलविदा कहना,
सुना कुछ नहीं और कहा भी कुछ नहीं,
बर्बाद हुवे उनकी मोहब्बतमें,
की लुटा कुछ नहीं और बचा भी कुछ नहीं...!

1795
सुनो ...
कभी फुर्सत मिले,
तो याद कर लेना...
हम तो एक हिचकीसे भी,
खुश हो जायेंगे !!!

30 September 2017

1786 - 1790 दिल जालिम कदर हवाले हँसी दिखावे तमाशा खफा भूल बात मजबूर शायरी


1786
मैं बहुत जालिम हूँ ना,
ए मेरे दिल...?
तुझे हमेशा उसके हवाले किया,
जिसे तेरी कोई कदर ही नहीं...!!

1787
मुझसे अब और तमाशा हो नहीं सकता,
ले जा ये दिखावेकी हँसी भी आकर.......

1788
हम तो अपने आपसे भी,
खफा नहीं हो सकते;
हमारी दिलकी मजबूरीयाँ ही,
कुछ अलग हैं.......

1789
रोज़ सोचता हुँ,
रोज़ यहीं बात...
उन्हे भूल जाऊ,
भूल जाता हुँ........

1790
गरूर तो नहीं करता लेकिन,
इतना यक़ीन ज़रूर हैं . . .
कि अगर याद नहीं करोगे तो...
भुला भी नहीं सकोगे . . . . . . .

24 September 2017

1781 - 1785 मोहोबत हाल बिछड़ ज़माना अकेला तलबगार शीशा बिखर दरारे जीने मरने शायरी


1781
मैं जहाँ हूँ, जिस हालमें हूँ ...
हर हालमें तुम्हारा हूँ .......

1782
देख लो,
बिछड़ गया ना वो मुझसे...
ज़माना अकेला मुझे देखनेको
तलबगार बहुत था.......

1783
शीशा टूटे और बिखर जाये,
वो बेहतर हैं...
दरारे ना जीने देती हैं,
ना मरने.......

1784
वो सजा भी नहीं देते,
और सजा ही देते हैं...
उनसे मोहोबत करनेका,
वो मजा लेते हैं.......

1785
बेहद हदें पार की थी,
हमने कभी किसीके लिए........
आज उसीने सिखा दिया,
हदमें रहना . . . . . . .

23 September 2017

1776 - 1780 दिल तमन्ना बगैर मजबूर आँख मौसम भूल वक्त कदम आँगन हैरान मुकाम आदतें शायरी


1776
ना थी मेरी "तमन्ना",
कभी तेरे बगैर रहनेकी ",
लेकिन...
मजबूरको, मजबूरकी,
मजबूरियाँ, मजबूर कर देती हैं...

1777
आ देख मेरी आँखोंके,
ये भीगे हुए मौसम,
ये किसने कह दिया,
कि तुझे भूल गये हैं हम...

1778
कभी वक्त मिले तो, रखना कदम,
मेरे दिलके आँगनमें !
हैरान रह जाओगे ...
मेरे दिलमें, अपना मुकाम देखकर . . .

1779
आदतें बुरी नहीं, शौक ऊँचे हैं,
वर्ना किसी ख्वाबकी,
इतनी औकात नहीं,
की हम देखे और पुरा ना हो !

1780
आँख उठाकर भी न देखूँ,
जिससे मेरा दिल न मिले,
जबरन सबसे हाथ मिलाना,
मेरे बसकी बात नहीं . . .

22 September 2017

1771 - 1775 दिल मोहब्बत प्यार बेवफा यार तमाशा मकसद तलबगार अजीब सबूत नज़रें शायरी


1771
हमें न मोहब्बत मिली, न प्यार मिला;
हमको जो भी मिला, बेवफा यार मिला!
अपनी तो बन गई तमाशा ए ज़िन्दगी;
हर कोई अपने मकसदका तलबगार मिला...

1772
तू मुझसे बस,
इतनीसी मोहब्बत निभा दे दे;
जब मैं रुठु तो,
 तू मुझे मना लेना . . . !

1773
अजीब सबूत माँगा उसने,
मेरी मोहब्बतका,
कि मुझे भूल जाओ...
तो मानूँ मोहब्बत हैं !

1774
नज़रें चुराऊँ उनसे,
तो दिल बहकने लगता हैं...
नजरें मिलाऊँ उनसे,
तो दिल धड़कने लगता हैं.......

1775
“ए पलक तु बन्‍द हो जा,
ख्‍बाबोंमें उसकी सूरत तो नजर आयेगी;
इन्‍तजार तो सुबह दुबारा शुरू होगी,
कमसे कम रात तो खुशीसे कट जायेगी !”

21 September 2017

1766 - 1770 जिन्दगी प्यारे रिश्ते किताब नाम शक मर्ज बढीयाँ इलाज वक्त दवा ख्वाहिश परहेज शायरी


1766
किताबका नाम यूँ ही,
'मेरी आत्मकथा' रखा हैं,
बाकी इसके हर एक पन्नोंपर,
नाम तो सिर्फ उनका ही लिखा हैं...!

1767
बड़े प्यारे होते हैं न ऐसे रिश्ते.......
जिनपर कोई हक़ भी न हो
और शक भी न हो...!!!

1768
जिन्दगीने मेरे मर्जका,
एक बढीयाँसा इलाज बताया...
वक्तको दवा कहा और,
ख्वाहिशोंका परहेज बताया...!!!

1769
हर एक लकीर,
एक तजुर्बा हैं जनाब,,,
झुर्रियाँ चेहरोंपर,
यूँ ही आया नहीं करती...!

1770
आरामसे कट रही थी,
तो अच्छी थी,
जिंदगी तू कहाँ,
उनकी आँखोंकी बातोंमें आ गयी...!

20 September 2017

1761 - 1765 दिल दीवानगी उधार किश्तें अदा जरुरत हुनर राज रविश तरीका साथ शायरी


1761
मेरी दीवानगीका उधार,
उन्हे चुकानेकी जरुरत नहीं हैं,
मैं उन्हे देखता हूँ और,
किश्तें अदा हो जाती हैं...!

1762
कोई हुनर, कोई राज, कोई रविश,
कोई तो तरीका बताओके.......
दिल टूटे भी ना, साथ छूटे भी ना, कोई रूठे भी ना...
और जिंदगी गुजर जाऐ . . . . . . .

1763
ना दर्दने किसीको सताया होता,
ना आँखोंने किसीको रुलाया होता,
खुशी ही खुशी होती हर जगह अगर...
बनाने वालेने दिल ही न बनाया होता.......

1764
तहजीब सिखादी मुझे,
एक छोटेसे मकानने,
दरवाजेपर लिखा था,
"थोडा झुककर चलिये..."

1765
बड़ी हसरतसे सर पटक पटकके गुजर गई,
कल शाम मेरे शहरसे आँधी ।।
वो पेड़ आज भी मुस्कुरा रहें हैं,
जिन्हें हुनर था थोडा झुक जानेका ।।