3241
ये कैसी कशिश
हैं उसमें
चुप हैं पर
सुनाई देता हैं ।
3242
कशिश तोह बहुत
हैं मेरे प्यारमें,
लेकिन कोई हैं पत्थर दिल जो
पिघलाता नहीं;
अगर मिले खुद
तो माँगूगा उसको,
सुना हैं ख़ुदा
मरनेसे पहले
मिलते नहीं...
3243
शीशा तो टूटके,
अपनी कशिश
बता देता हैं...
दर्द तो उस
पत्थरका हैं,
जो टुटनेके
काबिल भी नहीं...
3244
अजीबसी कशिश
थी,
तेरी आँखोंके इशारेमें,
वरना लहरोंपर चलने
वाले,
किनारोंपर
नहीं डुबा करते...!
3245
भीगते हैं जिस
तरहसे,
तेरी
यादोंमें डूबकर,
इस बारिशमें कहाँ
वो,
कशिश तेरे
ख्यालों जैसी...