4866
कभी कभी हाथ
छुड़ानेकी,
ज़रूरत
नहीं होती...
लोग साथ रह
कर भी,
बिछड़
जाते हैं.......
4867
कहती हैं मुझे
ज़िन्दगी,
कि मैं आदतें
बदल लूँ...
बहुत चला मैं
लोगोंके पीछे,
अब थोड़ा खुदके
साथ चल लूँ...!
4868
चायकी चुस्कीके साथ अक्सर,
कुछ गम भी
पीता हूँ...
मिठास कम हैं ज़िन्दगीमें,
मगर
जिंदादिलीसे जीता
हूँ...!
4869
अभी तो साथ
चलना हैं,
समंदरकी लहरोंमें...
किनारेपर ही
देखेंगे,
किनारा कौन करता हैं...!
4870
अधूरी पड़ी ज़िन्दगी,
पूरी करते हैं...
कयामत न जाने
कब आए,
तुम रूको, हम
साथ चलते हैं...!