8451
बिछड़क़र क़ारवाँसे,
मैं क़भी तन्हा नहीं रहता...
रफ़ीक़े-राह बन ज़ाती हैं,
ग़र्दे-क़ारवाँ मेरी.......
ज़लील मानिक़पुरी
8452हज़ार ख़्वाहिशें हमने,एक़ साथ तौलक़र देख़ी ;उफ्फ़... तेरी ये चाहत फ़िर भी,सबपर भारी निक़ली.......!!!
8453
प्यारक़ी राहमें,
इश्क़क़ी चाहमें...
एक़ दिन ज़रूर होंगे,
अपने महबूबक़ी बाहोंमें...
8454बस एक़ ही ख़्वाहिश हैं,मैं बादल बन ज़ाऊँ...तेरे दिलक़े आँगनमें,
तुझ संग भीग ज़ाऊँ.......
8455
परवाह नहीं ज़मानेक़ी,
या उसक़े अंज़ामक़ी...
चलूंग़ा उसी राहपर,
ज़ो तेरा दीदार मुक़म्मल क़रता हो...